Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 542
________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद] [५२१ वैक्रियशरीर नहीं होता । देव और नारक वैक्रियशरीरधारी होते हैं, उनके औदारिकशरीर नहीं होता, किन्तु जो तिर्यञ्च या मनुष्य वैक्रियशरीर वाले होते हैं, उनके औदारिकशरीर होता है । (२) जिनके औदारिकशरीर होता है, उनके आहारकशरीर होता भी है, नहीं भी होता है । जो चतुर्दशपूर्वधारी आहारकलब्धिसम्पन्न मुनि है, उसके आहारकशरीर होता है, शेष औदारिकशरीरधारी मनुष्यों को नहीं होता । इसी प्रकार जिसके आहारकशरीर होता है उसके औदारिकशरीर अवश्य होता है, क्योंकि औदारिकशरीर के बिना आहारकलब्धि नहीं होती है । वैक्रियशरीर के साथ आहारकशरीर या आहारकशरीर के साथ वैक्रिशरीर कदापि संभव नहीं है । (३) जिसके औदारिक होता है, उसके तैजस-कार्मणशरीरों का होना अवश्यम्भावी है, किन्तु जिसके तैजस-कार्मणशरीर होते हैं उसके औदारिकशरीर होता भी है, नहीं भी होता है, क्योंकि देवों और नारकों के तैजस-कार्मणशरीर होते हुए भी औदारिकशरीर नहीं होता। इसी प्रकार जिस जीव के वैक्रियशरीर होता है, उसके तैजस-कार्मणशरीर अवश्य होते हैं, किन्तु जिस जीव के तैजस-कार्मणशरीर होते हैं उसके वैकिय शरीर होता भी हैं, नहीं भी होता, क्योंकि देव-नारकों के तैजसकार्मणशरीर होते हैं और वैक्रियशरीर भी प्रत्येक देव नाटक को होता है किन्तु तिर्यञ्चों और मनुष्यों के वैक्रियशरीर जन्म से नहीं होता, मगर तैजसकार्मणशरीर तो अवश्य होते हैं। (४) तैजसशरीर जिसके होता है उसके औदारिक होता भी है, नहीं भी होता, क्योंकि मनुष्य-तिर्यञ्च के औदारिकशरीर होता है, तैजसशरीर भी, जबकि वैक्रियशरीरी देवों नारकों के तैजसशरीर तो होता ही है, किन्तु औदारिक नहीं होता । इसी प्रकार जिसके औदारिकशरीर होता है, उसके तैजस-कार्मणशरीर अवश्यम्भावी होते हैं, क्योकि तैजस-कार्मणशरीर के बिना औदारिकशरीर असम्भव है । इसी प्रकार तैजस और कार्मण दोनों परस्पर अविनाभावी हैं । जिसके तैजसशरीर होगा, उसके कार्मणशरीर अवश्य होगा । जिसके कार्मणशरीर होगा, उसके तैजस अवश्य होगा । द्रव्य-प्रदेश-अल्पबहुत्वद्वार १५६५. एतेसि णं भंते ! ओरालिय-वेउव्विय-आहारग-तेया-कम्मगसरीराणं दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४ ? गोयमा ! सव्वत्थोवा आहारगसरीरा दव्वट्ठयाए वेउव्वियसरीरा दव्वट्ठायाए असंखेजगुणा, ओरालियसरीरा दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा, तेया-कम्ममसरीरा दो वि तुल्ला दव्वट्ठयाए अणंतगुणा; पएसट्टयाए-सव्वत्थोवा आहारगसरीरा पएसट्टयाए, वेउव्वियसरीरा पदेसट्ठयाए असंखेजगुणा, ओरालियसरीरा पदेसट्टयाए असंखेजगुणा, तेयगसरीरा पदेसट्टयाए अणंतगुणा, कम्मगसरीरा पदेसट्टयाए अणंतगुणा; दव्वट्ठपदेसट्टयाए-सव्वत्थोवा आहारगसरीरा दव्वट्ठयाए, वेउव्वियसरीरा दव्वट्ठयाए १. (क) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४३२ (ख) प्रज्ञापना. प्रमेयबोधिनीटीका भा.४, पृ.८१२-८१३

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