Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 544
________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद] [ ५२३ मनुष्यों के होते हैं और फिर पृथ्वी-अप्-तेज-वायु-वनस्पतिकायिकों में से प्रत्येक असंख्यात लोकाकाशप्रमाण हैं । तैजस और कार्मण दोनों शरीर संख्या में समान हैं, फिर भी वे औदारिकशरीरों की अपेक्षा से · अनन्तगुणे हैं, क्योंकि औदारिकशरीरधारियों के उपरान्त वैक्रियशरीरधारियों के भी तैजस-कार्मणशरीर होते हैं तथा सूक्ष्म एवं बादर निगोद जीव अनन्तानन्त हैं, उनके औदारिकशरीर एक होता है किन्तु तैजसकार्मणशरीर पृथक्-पृथक् होते हैं ।' प्रदेशों (शरीर के प्रदेशों-परमाणुओं) की दृष्टि से विचार किया जाए तो सबसे कम आहारकशरीर हैं, क्योंकि सहस्रपृथक्त्व संख्या वाले आहारकशरीरों के प्रदेश अन्य सभी शरीरों के प्रदेशों की अपेक्षा कम ही होते हैं । यद्यपि वैक्रियवर्गणाओं की अपेक्षा आहारकवर्गणा परमाणुओं की अपेक्षा से अनन्तगुणी होती है, तथापि आहारकशरीरों से वैक्रियशरीरों के प्रदेश असंख्यातगुणा इसलिए कहे गए हैं कि एक तो आहारकशरीर केवल एक हाथ का ही होता है, जबकि बहुत वर्गणाओं से निर्मित वैक्रियशरीर उत्कृष्टतः एक लाख योजन से भी अधिक प्रमाण का हो सकता है । दूसरे, आहारकशरीर संख्या में भी कम, सिर्फ सहस्रपृथक्त्व होते हैं, जबकि वैक्रियशरीर असंख्यात-श्रेणीगत आकाशप्रदेशों के बराबर होते हैं । इस कारण आहारकशरीरों की अपेक्षा वैक्रियशरीर प्रदेशों की दृष्टि से असंख्यातगुणे कहे गए हैं । उनसे औदारिकशरीर प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे इसलिए कहे गए हैं कि वे असंख्यात लोकाकाशों के बराबर पाए जाते हैं, इस कारण उनके प्रदेश अति प्रचुर होते हैं । उनसे तैजसशरीर प्रदेशों की दृष्टि से अनन्तगुणा अधिक होते हैं, क्योंकि वे द्रव्यदृष्टि से औदारिकशरीरों से अनन्तगुणा हैं । तैजसशरीरों की अपेक्षा कार्मणशरीर प्रदेशों की दृष्टि से अनन्तगुणा हैं, क्योंकि कार्मणवर्गणाएँ तैजसवर्गणाओं की अपेक्षा परमाणुओं की दृष्टि से अनन्तगुणी होती हैं।' ____ द्रव्य और प्रदेश-दोनों की दृष्टि से विचार करने पर भी द्रव्यापेक्षया सबसे कम आहारकशरीर हैं, वैक्रियशरीर द्रव्यापेक्षया असंख्यातगुणा अधिक हैं, उनसे भी औदारिकशरीर द्रव्यतः असंख्यातगुणे हैं, यहाँ भी वही पूर्वोक्त युक्ति है । द्रव्यतः औदारिकशरीरों की अपेक्षा प्रदेशतः आहारकशरीर अनन्तगुणे हैं, क्योंकि औदारिकशरीर सब मिल कर भी असंख्यात लोकाकाश प्रदेशों के बराबर हैं, जबकि प्रत्येक आहारकशरीरयोग्य वर्गणा में अभव्यों से अनन्तगुणा परमाणु होते हैं । उनकी अपेक्षा भी वैक्रियशरीर प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं । उनसे भी औदारिकशरीर प्रदेशतः असंख्यातगुणे हैं, इस विषय में युक्ति पूर्ववत् है । उनसे भी तैजसकार्मणशरीर द्रव्यापेक्षया अनन्तगुणे हैं, क्योंकि वे अतिप्रचुर अनन्त संख्या से युक्त हैं । उनसे भी तैजसशरीर प्रदेशतः अनन्तगुणे अधिक हैं, क्योंकि अनन्त-परमाण्वात्मक अनन्तवर्गणाओं से प्रत्येक तैजसशरीर १. (क) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४३३-४३४ (ख) प्रज्ञापना, प्रमेयबोधिनी टीका भा. ४, पृ. ८२२-८२३ प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४३४

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