Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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४९० ]
[प्रज्ञापनासूत्र
[उ.] गौतम ! (वह अवगाहना) दो प्रकार की कही गई है, यथा-भवधारणीया और उत्तरवैकिया अवगाहना । उनमें से भवधारणीया-शरीरावगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग है और उत्कृष्टतः सात धनुष, तीन रनि (मुंड हाथ) और छह अंगुल की है । उनकी उत्तरवैक्रिया-अवगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्टतः पन्द्रह धनुष, ढाई रनि (मुंड हाथ) की है । _ [३] सक्करप्पभाए पुच्छा ।
गोयमा ! जाव तत्थ णंजा सा भवधारणिजा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं पण्णरस धणूई अड्डाइजाओ रयणीओ । तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजइभागं, उक्कोसेणं एक्कतीसं धणूई एक्का य रयणी ।
[१५२९-३ प्र.] इसी प्रकार की पृच्छा शर्कराप्रभा के नारकों की शरीरावगाहना के विषय में करनी चाहिए ।
[उ.] गौतम ! यावत् (दो प्रकार की अवगाहना कही है, उनमें से) भवधारणीया (अवगाहना) जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्टतः पन्द्रह धनुष, ढाई रत्नि की है (तथा) उत्तरवैक्रिया (अवगाहना) जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग है, (और) उत्कृष्टः इकतीस धनुष एक रत्नि की है।
[४] वालुयप्पभाए भवधारणिजा एक्कतीसं धणूई एक्का य रयणी, उत्तरवेउव्विया बावढि धणूई दोण्णि य रयणीओ।
[१५२९-४ प्र.] बालुकाप्रभा (पृथ्वी के नारकों) की भवधारणीया (अवगाहना)इकतीस धनुष एक रनि की है (और) उत्तरवैक्रिया (अवगाहना) बासठ धनुष, दो हाथ की है ।
[५] पंकप्पभाए भवधारणिज्जा बावर्द्धि धणूई दोण्णि य रयणीओ, उत्तरवेउव्विया पणुवीसं धणुसयं ।
[१५२९-५] पंकप्रभा-(पृथ्वी के नारकों) की भवधारणीया (अवगाहना) बासठ धनुष दो हाथ की है (और) उत्तरवैक्रिया (अवगाहना) एक सौ पच्चीस धनुष की है। .
[६] धूमप्पभाए भवधारणिज्जा पणुवीसं धणुसयं, उत्तरवेउव्विया अड्डाइजाइं धणुसयाई। __ [१५२९-६] धूम प्रभा-(पृथ्वी के नारकों) की भवधारणीया (अवगाहना) एक सौ पच्चीस धनुष की है (और) उत्तरवैक्रिया (अवगाहना) अढाई सौ धनुष की है ।
[७] तमाए भवधारणिज्जा अड्डाइजाइं धणुसयाई, उत्तरवेउब्विया पंच धणुसयाई।
[१५२९-७] तमः (पृथ्वी के नारकों) की भवधारणीया (अवगाहना) अढाई सौ धनुष की है (और) उत्तरवैक्रिया (अवगाहना) पांच सौ धनुष की है ।