Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 517
________________ ४९६ ] [प्रज्ञापनासूत्र है, वह ग्यारहवें प्रस्तट की अपेक्षा से समझनी चाहिए। क्रमशः अन्य प्रस्तटों की अवगाहना इस प्रकार हैप्रथम प्रस्तट में ७ धनुष ३ हाथ ६ अंगुल की, दूसरे प्रस्तट में ८ धनुष २ हाथ ९ अंगुल की, तीसरे प्रस्तट में ९ धनुष १ हाथ १२ अंगुल की, चौथे में १० धनुष १५ अंगुल की, पांचवें प्रस्तट में १० धनुष ३ हाथ १८. अंगुल की, छठे प्रस्तट में ११ धनुष २ हाथ २१ अंगुल की, सातवें में १२ धनुष २ हाथ की, आठवें प्रस्तट में १३ धनुष १ हाथ ३ अंगुल की, नौवें प्रस्तट में १४ धनुष ६ अंगुल की, दसवें प्रस्तट में १४ धनुष ३ हाथ और ९ अंगुल की तथा ग्यारहवें प्रस्तट में पूर्वोक्त शरीरावगाहना समझनी चाहिए। . बालुकाप्रभापृथ्वी के नारकों की जो भवधारणीय उत्कृष्ट शरीरावगाहना ३१ धनुष १ हाथ बताई है, वह नौवें प्रस्तट की अपेक्षा से समझनी चाहिए। अन्य प्रस्तटों में अवगाहना इस प्रकार है - प्रथम प्रस्तट में १५ धनुष २ हाथ १२ अंगुल की, दूसरे प्रस्तट में १७ धनुष २ हाथ ७॥ अंगुल की, तीसरे प्रस्तट में १९ धनुष २ हाथ ३ अंगुल की, चौथे प्रस्तट में २१ धनुष १ हाथ २२ ।। अंगुल की, पांचवें प्रस्तट में २३ धनुष १ हाथ १८ अंगुल की, छठे प्रस्तट में २५ धनुष १ हाथ १३ ॥ अंगुल की, सातवें प्रस्तट में २७ धनुष १ हाथ ९ अंगुल की, आठवें प्रस्तट में २९ धनुष १ हाथ ४॥ अंगुल की और नौवें प्रस्तट में पूर्वोक्त शरीरावगाहना समझनी चाहिए। पंकप्रभापृथ्वी में उत्कृष्ट भवधारणीय शरीरावगाहना ६२ धनुष २ हाथ की बताई गई हैं, वह सातवें प्रस्तट में जाननी चाहिए। अन्य प्रस्तटों में अवगाहना इस प्रकार है - प्रथम प्रस्तट में ३१ धनुष १ हाथ की, दूसरे प्रस्तट में छत्तीस धनुष १ हाथ २० अंगुल की, तीसरे प्रस्तट में ४१ धनुष २ हाथ १६ अंगुल की, चौथे प्रस्तट में ४६ धनुष ३ हाथ १२ अंगुल की, पांचवें प्रस्तट में ५२ धनुष ८ अंगुल की, छठे प्रस्तट में ५७ धनुष १ हाथ ४ अंगुल की और सातवें प्रस्तट में पूर्वोक्त अवगाहना होती हैं। धूमप्रभापृथ्वी में उत्कृष्ट भवधारणीय शरीरावगाहना १२५ धनुष को बताई है, वह पंचम प्रस्तट की अपेक्षा से समझनी चाहिए। इसके प्रथम प्रस्तट में ६२ धनुष २ हाथ की, दूसरे में ७८ धनुष १ बितस्ति (बीता), तीसरे में ९३ धनुष ३ हाथ, चौथे प्रस्तट (पाथड़े) में १०९ धनुष १ हाथ और १ बितस्ति और पांचवें प्रस्तट में पूर्वोक्त अवगाहना समझनी चाहिए। तमः प्रभापृथ्वी के नारकों की उत्कृष्ट भवधारणीय अवगाहना २५० धनुष की है, वह तृतीय पाथड़े की अपेक्षा से है। अन्य पाथड़ों का परिमाण है- प्रथम पाथड़े में १२५ धनुष की, दूसरे पाथड़े में १८७॥ धनुष की और तीसरे पाथड़े की अवगाहना पूर्वोक्त परिमाण वाली है। तमस्तमापृथ्वी के नारकों की उत्कृष्ट भवधारणीय शरीरावगाहना ५०० धनुष की कही गई है। रत्नप्रभापृथ्वी की उत्तरवैक्रिय-शरीरावगहना उत्कृष्टतः १५ धनुष २॥ हाथ की होती है, यह अवगाहना १३ वें पाथड़े में पाई जाती है। अन्य पाथड़ों में पूर्वोक्त भवधारणीय शरीरावगाहना के परिमाण से दुगुनी समझनी चाहिए।

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