Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद]
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शर्कराप्रभापृथ्वी की उत्तरवैक्रिय-शरीरावगाहना उत्कृष्ट ३१ धनुष १ हाथ की होती है, जो ११ वें पाथड़े में पाई जाती है। अन्य पाथड़ों में अपने-अपने भवधारणीय-शरीर की अवगाहना से उत्तरवैक्रियशरीर की अवगाहना दुगुनी-दुगुनी होती है।
बालुकाप्रभा की उत्तरवैक्रिय-शरीरावगाहना उत्कृष्ट ६२ धनुष २ हाथ की होती है, जो उसके नौवें पाथड़े की अपेक्षा से है। अन्य पाथड़ों में अपने-अपने भवधारणीय-अवगाहना-प्रमाण से दुगुनी-दुगुनी अवगाहना होती है।
पंकप्रभा की उत्कृष्ट उत्तरवैक्रिय-शरीरावगाहना १२५ धनुष की है, जो उसके सातवें पाथड़े में पाई जाती है। अन्य पाथड़ों में अपनी-अपनी भवधारणीय-शरीरावगाहना से दुगुनी-दुगुनी अवगाहना समझ लेनी चाहिए।
धूमप्रभापृथ्वी की उत्कृष्ट उत्तरवैक्रिय-शरीरावगाहना २५० धनुष की है, जो उसके पांचवें पाथड़े की अपेक्षा से है। बाकी के पाथड़ों की उत्तरवैक्रियावगाहना, अपनी-अपनी भवधारणीय-अवगाहना से दुगुनीदुगुनी है।
· तमःप्रभापृथ्वी की उत्कृष्ट उत्तरवैक्रिय-शरीरावगाहना ५०० धनुष की है, जो उसके तीसरे पाथड़े की अपेक्षा से है। प्रथम और द्वितीय प्रस्तट की उत्तरवैक्रियावगाहना अपनी-अपनी भवधारणीय शरीरावगहाना से दुगुनी-दुगुनी होती है।
सातवीं पृथ्वी के नारकों की उत्कृष्ट उत्तरवैक्रिय-शरीरावगाहना १००० धनुष की होती है।
स्थिति के अनुसार वैमानिक-देवों की भवधारणीय उत्कृष्ट अवगाहना- सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में जिन देवों की स्थिति दो सागरोपम की है, उनकी भवधारणीय-अवगाहना पूरे सात हाथ की होती है, जिनकी स्थिति ३ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ६ हाथ तथा एक हाथ के ४/११ भाग की है। जिनकी स्थिति ४ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ६ हाथ और एक हाथ के ३/११ भाग की है, जिनकी स्थिति ५ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ६ हाथ और एक हाथ के २/११ भाग की है, जिनकी स्थिति ६ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ६ हाथ और १/११ भाग की है। जिनकी स्थिति पूरे ७ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना पूरे ६ हाथ की है।
ब्रह्मलोक और लान्तककल्प- जिन देवों की स्थिति ब्रह्मलोक कल्प में ७ सागरोपम की है, उनकी भवधारणीय उत्कृष्ट अवगाहना पूरे ६ हाथ की है, जिनकी स्थिति ८ सागरोपम की है, उनकी भवधारणीय शरीरावगाहना ५ हाथ एवं ६/११ हाथ की होती है, जिनकी स्थिति नौ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ५ हाथ और ५/११ हाथ की होती है। जिनकी स्थिति १० सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ५ हाथ और ४/११ १. प्रज्ञापना मलयवृत्ति, पत्र ४१८ से ४२० तक