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________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद] [ ४९७ शर्कराप्रभापृथ्वी की उत्तरवैक्रिय-शरीरावगाहना उत्कृष्ट ३१ धनुष १ हाथ की होती है, जो ११ वें पाथड़े में पाई जाती है। अन्य पाथड़ों में अपने-अपने भवधारणीय-शरीर की अवगाहना से उत्तरवैक्रियशरीर की अवगाहना दुगुनी-दुगुनी होती है। बालुकाप्रभा की उत्तरवैक्रिय-शरीरावगाहना उत्कृष्ट ६२ धनुष २ हाथ की होती है, जो उसके नौवें पाथड़े की अपेक्षा से है। अन्य पाथड़ों में अपने-अपने भवधारणीय-अवगाहना-प्रमाण से दुगुनी-दुगुनी अवगाहना होती है। पंकप्रभा की उत्कृष्ट उत्तरवैक्रिय-शरीरावगाहना १२५ धनुष की है, जो उसके सातवें पाथड़े में पाई जाती है। अन्य पाथड़ों में अपनी-अपनी भवधारणीय-शरीरावगाहना से दुगुनी-दुगुनी अवगाहना समझ लेनी चाहिए। धूमप्रभापृथ्वी की उत्कृष्ट उत्तरवैक्रिय-शरीरावगाहना २५० धनुष की है, जो उसके पांचवें पाथड़े की अपेक्षा से है। बाकी के पाथड़ों की उत्तरवैक्रियावगाहना, अपनी-अपनी भवधारणीय-अवगाहना से दुगुनीदुगुनी है। · तमःप्रभापृथ्वी की उत्कृष्ट उत्तरवैक्रिय-शरीरावगाहना ५०० धनुष की है, जो उसके तीसरे पाथड़े की अपेक्षा से है। प्रथम और द्वितीय प्रस्तट की उत्तरवैक्रियावगाहना अपनी-अपनी भवधारणीय शरीरावगहाना से दुगुनी-दुगुनी होती है। सातवीं पृथ्वी के नारकों की उत्कृष्ट उत्तरवैक्रिय-शरीरावगाहना १००० धनुष की होती है। स्थिति के अनुसार वैमानिक-देवों की भवधारणीय उत्कृष्ट अवगाहना- सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में जिन देवों की स्थिति दो सागरोपम की है, उनकी भवधारणीय-अवगाहना पूरे सात हाथ की होती है, जिनकी स्थिति ३ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ६ हाथ तथा एक हाथ के ४/११ भाग की है। जिनकी स्थिति ४ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ६ हाथ और एक हाथ के ३/११ भाग की है, जिनकी स्थिति ५ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ६ हाथ और एक हाथ के २/११ भाग की है, जिनकी स्थिति ६ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ६ हाथ और १/११ भाग की है। जिनकी स्थिति पूरे ७ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना पूरे ६ हाथ की है। ब्रह्मलोक और लान्तककल्प- जिन देवों की स्थिति ब्रह्मलोक कल्प में ७ सागरोपम की है, उनकी भवधारणीय उत्कृष्ट अवगाहना पूरे ६ हाथ की है, जिनकी स्थिति ८ सागरोपम की है, उनकी भवधारणीय शरीरावगाहना ५ हाथ एवं ६/११ हाथ की होती है, जिनकी स्थिति नौ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ५ हाथ और ५/११ हाथ की होती है। जिनकी स्थिति १० सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ५ हाथ और ४/११ १. प्रज्ञापना मलयवृत्ति, पत्र ४१८ से ४२० तक
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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