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________________ ४९८ ] [प्रज्ञापनासूत्र हाथ की होती है। जिनकी स्थिति १० सागरोपम की है, उनकी उत्कृष्ट अवगाहना ५ हाथ और ४/११ हाथ की होती है, जिनकी स्थिति ११ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ५ हाथ और ३/११ हाथ की होती है। जिनकी स्थिति १३ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ५ हाथ और १/११ हाथ की होती है तथा जिनकी स्थिति १४ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना पूरे ५ हाथ की होती है। महाशुक्र और सहस्रार में जिन देवों की स्थिति महाशुक्रकल्प में १४ सागरोपम की है, उनकी उत्कृष्ट भवधारणीय-शरीरावगाहना पूरे ५ हाथ की होती है, जिनकी स्थिति १५ सागरोपम की है, उनकी उ. भ. शरीरावगाहना ४ हाथ और ३/११ हाथ की होती है, जिनकी स्थिति १६ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ४ हाथ और २/११ हाथ की होती है, जिनकी स्थिति १७ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ४ हाथ और १/११ हाथ की होती है। सहस्रारकल्प में भी १७ सागरोपम वाले देवों की उत्कृष्ट भ. अवगाहना इतनी ही होती है। जिनकी स्थिति पूरे १८ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना पूरे ४ हाथ की होती है। आनत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्प देवों की अवगाहना- आनतकल्प में जिनकी स्थिति पूरे १८ सागरोपम की है, उनकी भ. उ. शरीरावगाहना पूरे ४ हाथ की होती है, जिनकी स्थिति १९ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ३ हाथ और ३/११ हाथ की होती है । प्राणतकल्प में जिनकी स्थिति २० सागरोपम की है, उनकी अवगाहना ३ हाथ और २/११ हाथ की होती है । आरणकल्प में जिन देवों की स्थिति २० सागरोपम की है उनकी अवगाहना ३ हाथ और २/११ भाग की होती है, जिनकी स्थिति २१ सागरोपम की है, उनकी ३ हाथ और १/११ हाथ की होती है । अच्युतकल्प में जिनकी स्थिति २१ सागरोपम की है, उनकी भी भ. शरीरावगाहना ३ हाथ १/११ हाथ की होती है, जिन देवों की अच्युतकल्प में २२ सागरोपम की स्थिति है, उनकी उत्कृष्ट शरीरावगाहना ३ हाथ की होती है। प्रथम ग्रैवेयक में जिनकी स्थिति २३ सागरोपम की है, उनकी उ. अवगाहना ३ हाथ की होती है । द्वितीय ग्रैवेयक में जिनकी स्थिति २३ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना २ हाथ और ८/११ हाथ की होती है । द्वितीय ग्रैवेयक में जिनकी स्थिति २४ सागरोपम की है उनकी उ. अवगाहना २ हाथ ७/११ हाथ की होती है । तृतीय ग्रैवेयक में जिनकी स्थिति २४ सागरोपम की है, उनकी उत्कृष्ट शरीरावगाहना २ हाथ और ७/११ हाथ की होती है । तृतीय ग्रैवेयक में २५ सागरोपम की स्थिति वाले देवों की उ. शरीरावगाहना २ हाथ ६/११ हाथ की होती है । चौथे ग्रैवेयक में जिन देवों की स्थिति २५ सागरोपम की है, उनकी भी भ. शरीरावगाहना पूर्ववत् होती है । चौथे ग्रैवेयक में २६ सागरोपम की स्थति वाले देवों की भ. शरीरावगाहना २ हाथ व ५/११ हाथ की होती है । पांचवें ग्रैवेयक में जिन देवों की स्थिति २६ सागरोपम की है, उनकी भी उ. शरीरावगाहना पूर्ववत् ही है । पांचवें ग्रैवेयक में जिन देवों की स्थिति २७ सागरोपम की है, उनकी भी उ. भ. शरीरावगाहना २ हाथ और २/११ हाथ की होती है । छठे ग्रैवेयक में जिन देवों की स्थिति २७ सागरोपम की होती है, उ. भव. शरीरावगाहना भी पूर्ववत् होती है । छठे ग्रैवेयक में जिन देवों की स्थिति २८ सागरोपम की है, उनकी उ. भव. शरीरावगाहना २ हाथ और ३/११ हाथ की होती है । सातवें ग्रैवेयक में जिन देवों की स्थिति २८ सागरोपम की है, उनकी भी शरीरावगाहना पूर्ववत्
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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