SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 520
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद] [४९९ होती है । सातवें ग्रैवेयक में भी जिनकी स्थिति २९ सागरोपम की है, उनकी उ. शरीरावगाहना २ हाथ और २/११ हाथ की होती है । आठवें ग्रैवेयक में भी जिनकी स्थिति २९ सागरोपम की है, उनकी भ. उ. शरीरावगाहना पूर्ववत् होती है । आठवें ग्रैवेयक में जिनकी स्थिति ३० सागरोपम की है, उनकी भ. उ. शरीरावगाहना २ हाथ व १/११ हाथ की होती है । नौवें ग्रैवेयक में जिन देवों की स्थिति ३० सागरोपम की होती है, उनकी भ. उ. शरीरावगाहना भी पूर्ववत् होती है । नौवें ग्रैवेयक में जिन देवों की स्थिति ३१ सागरोपम की है, उनकी भवधारणीय शरीरावगाहना पूरे २ हाथ की होती है । विजयादि चार अनुत्तर विमानवासी-जिन देवों की स्थिति ३१ सागरोपम की है, उनकी भ. उ. अवगाहना २ हाथ की होती है । विजयादि चार अनुत्तरविमानवासी जिन देवों की मध्यम-स्थिति ३१ सागरोपम की होती है उनकी भ. उ. अवगाहना १ हाथ और १/११ हाथ की होती है तथा सर्वार्थसिद्ध विमान में देवों की स्थिति ३३ सागरोपम की होती है. उनकी अवगाहना १ हाथ की होती है। १५३३. [१] आहारगसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते । [१५३३-१ प्र.] भंते ! आहारकशरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! वह एक ही प्रकार का कहा गया है । [२] जदि एगागारे पण्णत्ते किं मणूसआहारगसरीरे अमणूसआहारगसरीरे ? गोयमा ! मणूसआहारगसरीरे, णो अमणूसआहारगसरीरे । - [१५३३-२ प्र.] (भगवन् !) यदि आहारकशरीर एक ही प्रकार का कहा गया है तो वह आहारकशरीर मनुष्य के होता है अथवा अमनुष्य के होता है ? [उ.] गौतम ! मनुष्य के आहारकशरीर होता है, किन्त मनुष्येतर के आहारकशरीर नहीं होता है। [३] जदि मणूसआहारगसरीरे किं सम्मच्छिममणूसआहारगसरीरे गब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे? गोयमा ! णो सम्मूच्छिममणूसआहारगसरीरे गब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे । [१५३३-३ प्र.] (भगवन् !) यदि मनुष्यों के आहारकशरीर होता है तो क्या सम्मूछिम मनुष्य के होता है, या गर्भज-मनुष्य के होता है ? [उ.] गौतम ! सम्मूछिम-मनुष्य के आहारकशरीर नहीं होता, (अपितु) गर्भज-मनुष्य के आहारकशरीर १. प्रज्ञापना मलय-वृत्ति, पत्र ४२१ से ४२३ तक
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy