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[ प्रज्ञापनासूत्र
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होता है ।
[ ४ ] जदि गब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे अकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे अंतरदीवगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे ?
गोयमा ! कम्मभूमगगब्भवक्कं तियमणूस आहार गसरीरे, णो अकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे, णो अंतरदीवगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे ।
[१५३३-४ प्र.] (भगवन् !) यदि गर्भज- मनुष्य के आहारकशरीर होता है तो क्या कर्मभूमिकगर्भज-मनुष्य के आहारकशरीर होता है, अकर्मभूमिक- गर्भज - मनुष्य के होता है, अथवा अन्तरद्वीपक मनुष्य के होता है ?
[१५३३-४] गौतम ! कर्मभूमिक- गर्भज मनुष्य के आहारकशरीर होता है, किन्तु न तो अकर्मभूमिक- गर्भज - मनुष्य के होता है और न अन्तरद्वीपक - गर्भज- मनुष्य के होता है ।
[ ५ ] जदि कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे किं संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवकंतियमणूस आहारगसरीरे असंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे ?
गोयमा ! संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे, णो असंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे ।
[१५३३-५] (भगवन् !) यदि कर्मभूमिक- गर्भज - मनुष्य के आहारकशरीर होता है, तो क्या संख्यातवर्षायुष्क-कमै भूमिक- गर्भज-मनुष्य के होता है या असंख्यात वर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज - मनुष्य के होता है ?
[उ.] गौतम ! संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक- गर्भज मनुष्य के आहारकशरीर होता है, किन्तु असंख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक- गर्भज - मनुष्य के नहीं होता है।
[ ६ ] जदि संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे किं पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे अपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवनंतियमणूस आहारगसरीरे ?
गोयमा ! पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे, णो अपजत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे ।
[१५३३-६] (भगवन् !) यदि संख्यातवर्षायुष्क- कर्मभूमिक- गर्भज - मनुष्यों के आहारक शरीर होता है, (तो) क्या पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक- गर्भज - मनुष्य के होता है (अथवा ) अपर्याप्तकसंख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक- गर्भज- मनुष्य के होता है ?