SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 522
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान - पद ] [ ५०१ ! [उ.] गौतम ! पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक- गर्भज-मनुष्यों के आहारकशरीर होता है किन्तु अपर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क- कर्मभूमिक- गर्भज-मनुष्यों के नहीं होता है । [ ७ ] जदि पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे किं सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कं तियमणूस आहारगसरीरे मिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे सम्मामिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे ? गोयमा ! सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे, णो मिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे, णो सम्मामिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्वंतियमणूस आहारगसरीरे । [१५३३-७] (भगवन् !) यदि पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के आहारकशरीर होता है तो क्या सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क- कर्मभूमिक- गर्भज- मनुष्यों के आहारकशरीर होता है, मिथ्यादृष्टि - पर्याप्तक- संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक- गर्भज-मनुष्यों के होता है, अथवा सम्यग्मिथ्यादृष्टिपर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक- गर्भज-मनुष्य के होता है ? [उ.] गौतम ! सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक- संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक- गर्भज - मनुष्यों के आहारकशरीर होता है, (किन्तु) न तो- मिथ्यादृष्टि - पर्याप्तंक - संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक- गर्भज - मनुष्यों के होता है और न ही सम्यग्मिथ्यादृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क - कर्मभूमिक- गर्भज - मनुष्यों के होता है और न ही सम्यग्मिथ्यादृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक- गर्भज - मनुष्यों के होता 1 [ ८ ] जदि सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे किं संजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे असंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे संजयासंजयसम्म - द्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे ? गोयमा ! संजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरेण असंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमंगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे णो संजयासंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे । [१५३३-८ प्र.] (भगवन् !) यदि सम्यग्दृष्टि - पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक- गर्भज-मनुष्यों के आहारकशरीर होता है तो क्या संयत- सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क- कर्मभूमिक- गर्भज-मनुष्यों के होता है, या असंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के होता है, अथवा संयतासंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क - कर्मभूमिक- गर्भज - मनुष्यों के होता है ?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy