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________________ ५०२ ] [प्रज्ञापनासूत्र [उ.] गौतम ! संयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के आहारकशरीर होता है, (किन्तु) न (तो) असंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के होता है और न ही संयतासंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के होता है। [९]जदि संजयसम्मद्दिछिपजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस-आहारगसरीरे किं पमत्तसंजयसम्मद्दिछिपजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे अपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्वंतियमणूसआहारगसरीरे ? गोयमा ! पमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठि पजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कं तियमणूसआहारगसरीरे, णो अपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे। __[१५३३-९ प्र.] (भगवन् !) यदि संयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भजमनुष्यों के आहारकशरीर होता है तो क्या प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिकगर्भज-मनुष्यों के होता है, अथवा अप्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भजमनुष्यों के होता है ? ___ [उ.] गौतम ! प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के आहारकशरीर होता है, अप्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के नहीं होता है। [१०] जदि पमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे, किं इड्डिपत्तपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कं तियमणूसआहारगसरीरे, अणिड्डि पत्तपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठि पजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्वंतियमणूसआहारगसरीरे ? गोयमा ! इड्विपत्तपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे, णो अणिड्डिपत्तपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठि पजत्तगसंखेजवासाउयकम्मभूमगगब्भववंतियमणूसआहारगसरीरे । [१५३३-१० प्र.] (भगवन् !) यदि प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिकगर्भज-मनुष्यों के आहारकशरीर होता है तो क्या ऋद्धिप्राप्त-प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्ककर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के होता है, अथवा अनृद्धिप्राप्त-प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्ककर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के होता है ?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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