Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद]
[४९५
ज.-अंगुल के संख्यातवें भाग उ.१ लाख योजन
शरीर
उ. ६ हाथ की माहेन्द्रकल्प के देवों के. ज.-अंगुल के असंख्यातवें भाग, वै. श.
उ. ६ हाथ की ब्रह्मलोक लान्तक दे. ज.-अंगुल के असंख्यातवें भाग, के वै. श.
उ.५ हाथ की महाशुक्र सहस्रार दे. ज.-अंगुल के असंख्यातवें भाग,
उ. ४ हाथ की आनत-प्राणत-आरण ज.-अंगुल के असंख्यातवें भाग, । अच्युत कल्प के दे. के उ. ३ हाथ की
वै.श.
वै. श.
१७. नवग्रैवेयकों के वै. श. ज.-अंगुल के असंख्यातवें भाग, उ. २ हाथ की १८. पंच अनुत्तरौपपातिक ज.-अंगुल के असंख्यातवें भाग, उ. १ हाथ की
दे. के वै. शरीर
नारकों की अवगाहना के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण - रत्नप्रभापृथ्वी के नारकों की- जो भवधारणीयशरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की कही है, वह उत्पत्ति के प्रथम-समय में होती है तथा जो उत्कृष्ट अवगाहना ७ धनुष ३ हाथ ६ अंगुल की बताई है, वह पर्याप्तअवस्था की अपेक्षा से तेरहवें प्रस्तट (पाथड़े) में जाननी चाहिए। इससे पूर्व के प्रस्तटों में क्रमशः थोड़ी-थोड़ी अवगाहना उत्तरोत्तर बढ़ती जाती हैं। वह इस प्रकार - रत्नप्रभापृथ्वी के प्रथम प्रस्तट में उत्कृष्ट अवगाहना तीन हाथ की, दूसरे प्रस्तट में १ धनुष १ हाथ ८॥ अंगुल की, तीसरे प्रस्तट में १ धनुष ३ हाथ १७ अंगुल की, चौथे प्रस्तट में २ धनुष २ हाथ १॥ अंगुल की, पाँचवें प्रस्तट में ३ धनुष १० अंगुल की, छटे प्रस्तट में ३ धनुष २ हाथ १॥ अंगुल की, सातवें प्रस्तट में ४ धनुष १ हाथ ३ अंगुल की, आठवें प्रस्तट में ४ धनुष ३ हाथ १॥ अंगुल की, नौवें प्रस्तट में ५ धनुष १ हाथ २० अंगुल की, दसवें प्रस्तट में ६ धनुष ४॥ अंगुल की, ग्यारहवें प्रस्तट में ६ धनुष २ हाथ १३ अंगुल की, बारहवें प्रस्तंट में ७ धनुष २१॥ अंगुल की और १३ वें प्रस्तट में पूर्वोक्त अवगाहना होती है।
शर्कराप्रभापृथ्वी के नारकों की जो भवधारणीय उत्कृष्ट शरीरावगाहना १५ धनुष २ ॥ हाथ की बताई
१.
पण्णवण्णासुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. १ पृ. २४०-३४१