Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 509
________________ ४८८ ] समचतुरस्त्रसंस्थान वाला होता है । [ ७ ] एवं अणुत्तरोववातियाणवि । [१५२६-७] इसी प्रकार पांच अनुत्तरौपपातिक - वैमानिकदेवों के भी ( भवधारणीय वैक्रियशरीर ही होता है और वह समचतुरस्रसंस्थान वाला होता है ।) विवेचन - वैक्रियशरीरों के संस्थान का निरूपण प्रस्तुत ६ सूत्रों (सू. १५२१ से १५२६ तक) में समस्त प्रकार के वैक्रियशरीरधारी जीवों को लक्ष्य में लेकर तदनुसार उनके संस्थानों का निरूपण किया गया है । [ प्रज्ञापनासूत्र - वैक्रियशरीर के प्रकार एवं तत्सम्बन्धी संस्थान- विचार - समुच्चय वैक्रियशरीर, वायुकायिक वैक्रियशरीर तथा समस्त तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रियों और मनुष्यों के वैक्रियशरीर के सिवाय समस्त नारकों और समस्त देवों के वैक्रियशरीर के संस्थान की चर्चा करते समय भवधारणीय और उत्तरवैक्रियशरीरों को लक्ष्य में लेकर उनके संस्थानों का विचार किया गया है । भवधारणीयवैक्रियशरीर वह है, जो जन्म से ही प्राप्त होता है और उत्तरवैक्रियशरीर स्वेच्छानुसार नाना आकृति का निर्मित किया जाता है । १. पण्णवणासुत्तं (परिशिष्ट - प्रस्तावनादि) भाग - २, पृ. ११८ २. वही. भा. २, पृ. ११८ (क) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४१६ ४१७ (ख) प्रज्ञापना, प्रमेयबोधिनीटीका भा. ४, पृ. ६९७, ७०३ नैरयिकों के अत्यन्त क्लिष्टकर्मोदयवश, भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय, दोनों शरीर हुण्डकसंस्थान वाले ही होते हैं । उनका भवधारणीयशरीर भवस्वभाव से ही ऐसे पक्षी के समान बीभत्स हुण्डकसंस्थान वाला होता है, जिसके सारे पंख तथा गर्दन आदि के रोम उखाड़ दिये गए हों । यद्यपि नारकों को नाना शुभआकृति बनाने के लिए उत्तरवैक्रियशरीर मिलता है, तथापि अत्यन्त अशुभत्तर नामकर्म के उदय से उसका भी. आकार हुण्डकसंस्थान जैसा होता है । अतएव वे शुभ आकार बनाने का विचार करते हैं, किन्तु अत्यन्त अशुभनामकर्मोदयवश हो जाता है - अत्यन्त अशुभतर । तिर्यञ्च - पंचेन्द्रियों और मनुष्यों को जन्म से वैक्रियशरीर नहीं मिलता, तपस्या आदि जनित लब्धि के प्रभाव से मिलता है । वह नानासंस्थानों वाला होता है । दस प्रकार के भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और कल्पोपपन्नवैमानिक देवों का भवधारणीयशरीर भवस्वभाव से तथाविध शुभनामकर्मोदयवश समचतुरस्त्रसंस्थान वाला होता है । इच्छानुसार प्रवृत्ति करने के कारण इनका उत्तरवैक्रियशरीर नाना संस्थान वाला होता है । उसका कोई एक नियत आकार नहीं होता । नौ ग्रैवेयक के देवों तथा पांच अनुतर विमानवासी देवों को उत्तरवैक्रियशरीर का कोई प्रयोजन न होने से वे उत्तरवैक्रियशरीर का निर्माण ही नहीं करते, क्योंकि उनमें परिचारणा या गमनागमन आदि नहीं होते । अतः उन कल्पातीत वैमानिक देवों में केवल भवधारणीयशरीर ही पाया जाता है और उसका संस्थान समचतुरस्र ही होता है । I ३.

Loading...

Page Navigation
1 ... 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545