Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 504
________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद] [ ४८३ [१५२०-१ प्र.](भगवन् !) यदि देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, तो क्या भवनवासी-देवपंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, (अथवा) यावत् वैमानिक-देव-पंचेन्द्रियों के (भी) वैक्रियशरीर होता [उ.] गौतम ! भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है और यावत् वैमानिक-देव-पंचेन्द्रियों के भी वैक्रियशरीर होता है । [२] जदि भवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं असुरकुमारभवणवासि-देवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे जाव थणियकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! असुरकुमार ० जाव थणियकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि । __ [१५२०-२ प्र.](भगवन् !) यदि भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है तो क्या असुरकुमारभवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, (अथवा) यावत् स्तनितकुमार-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के (भी) वैक्रियशरीर होता है ? [उ.] गौतम ! असुरकुमार-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है (और) यावत् स्तनितकुमार-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के भी वैक्रियशरीर होता है । [३] जदि असुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं पजत्तगअसुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउब्वियसरीरे अपज्जत्तगअसुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे? गोयमा ! पज्जत्तगअसुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउब्वियसरीरे वि पजत्तगअसुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि । एवं जाव थणियकुमारे वि णं दुगओ भेदो । [१५२०-३ प्र.](भगवन् !) यदि असुरकुमार-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, तो क्या पर्याप्तक-असुरकुमार-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, (अथवा) अपर्याप्तकअसुरकुमार-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है ? [उ.] गौतम ! पर्याप्तक-असुरकुमार-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है और अपर्याप्तकअसुरकुमार-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है । इसी प्रकार स्तनितकुमार-(भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों) के दोनों (पर्याप्तक-अपर्याप्तक) भेदो के (वैक्रियशरीर जानना चाहिए ।) [४] एवं वाणमंतराणं अट्ठविहाणं, जोइसियाणं पंचविहाणं । [१५२०-४] इसी तरह आठ प्रकार के वाणव्यन्तर-देवों के (तथा) पांच प्रकार के ज्योतिष्क-देवों के (वैक्रियशरीर होता है ।)

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