Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बीसवाँ अन्तक्रियापद]
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+ पंचम तीर्थंकरद्वार-में यह निर्देश किया है कि नारकादि मर कर सीघे मनुष्यभव में आकर तीर्थंकर
पद प्राप्त कर सकता है, या नहीं? साथ ही यह भी बताया गया है कि अगर तीर्थंकर-पद नहीं प्राप्त कर सकता है तो विकास क्रम में-अन्तक्रिया, विरति, विरताविरति, सम्यक्त्व, मोक्ष, धर्मश्रवण, मनःपर्यायज्ञान, इनमें से क्या प्राप्त कर सकता है ? छठे से दसवें द्वार तक-में क्रमशः चक्रवर्तीपद, बलदेवपद, वासुदेवपद, माण्डलिकपद एवं चक्रवर्ती के १४ रत्नों में से कोई भी एक रत्न, नारकों आदि सीघे कौन प्राप्त कर सकता है ? यह बताया गया है।' अन्त में असंयम भव्यद्रव्यदेव, संयम-अविराधक, संयम-विराधक, संयमासंयम-अविराधक, संयमासंयम-विराधक, असंज्ञी (अकामनिर्जरायुक्त) तापस, कान्दार्पिक, चरक-परिव्राजक, किल्विषिक, तैरश्चिक, आजीवक, आभियोगिक, स्वलिंगी एवं दर्शनभ्रष्ट, इनमें से किसकी किन देवों में उत्पत्ति है, यह बताया गया है।
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१.
पण्णवण्णासुत्तं भा. १, पृ. ३२७ पण्णवण्णासुत्तं भा. २, पृ. १६५-१६६