Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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दस भवनपति
पृथ्वी, अप्, वनस्पति
मनुष्यों में तथा पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में पृथ्वीकायिकों से लेकर चतुरिन्द्रियों तक में
पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में
द्वि-त्रि- चतुरिन्द्रिय पृथ्वीकायिकों से लेकर पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में
कई मनुष्यों में
भवनपतियों में
तेज, वायु
पंचेन्द्रियतिर्यञ्च
मनुष्य वाणव्यन्तर,
एवं वैमानिक
पृथ्वी, अप्, वनस्पति में
तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय या मनुष्य में
पृथ्वी, अप्, तेज और वायु में
तथा विकलेन्द्रियों में
ज्योतिष्क
१.
२.
एकेन्द्रिय से लेकर यावत् चतुरिन्द्रियों में
पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में या मनुष्यों के
वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिकों में उपर्युक्त जीवों में
[ प्रज्ञापनासूत्र
नारकों के समान
प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्र ४००
वही, पत्र ४००
नारकों के समान
धर्मश्रवण
पृथ्वीकायिक के समान
मनः पर्यवज्ञान
अवधिज्ञान
भवनपति देवों के समान उत्पत्ति
नरक के समान
तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों और मनुष्यों की उपलब्धि में अन्तर - यों तो तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों के समान प्रायः मनुष्य से सम्बन्धित सारी वक्तवयता है, किन्तु मनुष्यों की सर्वभावों की संभावना होने से उनकी मन:पर्यवज्ञान और केवलज्ञान उपलब्ध हो सकता है, अनगारत्व भी प्राप्त हो सकता है ।"
पृथ्वीकायिक के समान
नारक के समान
नारक के समान
नारक के समान
सिज्झेज्जा आदि पदों का अर्थ पहले लिखा जा चुका है ।
नैरयिकों की सीधी उत्पत्ति नहीं - नैरयिकों के भवस्वभाव के कारण वे नैरयिकों में से मर कर सीधे नैरयिकों में, भवनपति, वाणव्यन्तर ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवों में उत्पन्न नहीं होते, क्योंकि नैरयिकों का नैरयिकभव या देवभव का आयुष्यबन्ध होना असम्भव है ।"