Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 477
________________ ४५६ ] [प्रज्ञापनासूत्र भी सूक्ष्म, बादर पर्याप्तक और अपर्याप्तक के भेद से दो-दो प्रकार समझ लेनी चाहिए ।) १४८०. बेइंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - पजत्तबेइंदियओरालियसरीरे य अपजत्तबेइंदियओरालियसरीरे य। [१४८० प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय-औदारिकशरीर कितने प्रकार का कह गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार - पर्याप्तद्वीन्द्रिय-औदारिकशरीर और अपर्याप्तद्वीन्द्रिय-औदारिकशरीर । . १४८१. एवं तेइंदिय-चरिं दिया वि । [१४८१] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय (औदारिक शरीर के भी पर्याप्त और अपर्याप्तक, ये दोदो प्रकार जान लेने चाहिए ।) १४८२. पंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - तिरिक्खपंचेंदियओरालियसरीरे यं मणुस्सपंचेंदियओरालियसरीरे य । [१४८२ प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार-तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर और मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर । १७८३. तिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरेणं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते। तं जहा - जलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य १ थलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य २ खहयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य३। __ [१४८३ प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर कितने प्रकार का कहा गया है? [उ.] गौतम ! (वह)तीन प्रकार का कहा गया है, यथा- (१) जलचर-तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रियऔदारिकशरीर (२) स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर और (३) खेचर-तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर । १४८४. [१] जलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरेणं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - सम्मुच्छिमजलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे

Loading...

Page Navigation
1 ... 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545