Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 498
________________ इक्कीसवाँ अवगाहना - संस्थान - पद ] इयएगिंदियवेडव्वियसरीरे ? गोयमा ! वाउक्वाइयएगिंदियवेडव्वियसरीरे, णो अवाउक्वाइयएगिंदियवेडव्वियसरीरे । [१५१५-१] (भगवन् !) यदि एकेन्द्रिय जीवों के वैक्रियशरीर होता है, तो क्या वायुकायिकएकेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता या अवायुकायिक- एकेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है ? [ ४७७ [उ.] गौतम ! वायुकायिक- एकेन्द्रियों के वैक्रियशरीरं होता है, अवायुकायिक- एकेन्द्रिय के वैक्रियशरीर नहीं होता है । [ २ ] जदि वाउक्वाइयएगिंदियवेडव्वियसरीरे किं सुहुमवाउक्वाइयएगिंदियवेडव्वियसरीरे बादरवाउक्काइयएगिंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! णो सुहुमवाउक्काइयएगिंदियवेडव्वियसरीरे, बायरवाउक्काइयएगिंदियवेडव्वियसरीरे । [१५१५-२](भगवन् !) यदि वायुकायिक- एकेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, तो क्या सूक्ष्मवायुकायिक- एकेन्द्रिय के होता है, अथवा बादर - वायुकायिक- एकेन्द्रिय के होता है ? [उ.] गौतम ! सूक्ष्म-वायुकायिक- एकेन्द्रिय के वैक्रियशरीर नहीं होता; (किन्तु) बादर - वायुकायिकएकेन्द्रिय के वैक्रियशरीर होता है । [ ३ ] जदि बादरवाउक्काइयएगिंदियवेडव्वियसरीरे किं पज्जत्तबायरवाउक्काइयएगिंदयवेउव्वियसरीरे अपज्जत्तबायरवाउक्काइयएगिंदियवेडव्वियसरीरे ? गोयमा ! पज्जत्तबायर वाउ क्वाइयएगिंदियवे उव्वियसरीरे णं अपज्जत्तबादरवाउक्काइयएगिंदयवेउव्वियसरीरे । [१५१५-३](भगवन् !) यदि बादर - वायुकायिक- एकेन्द्रिय के वैक्रियशरीर होता है तो क्या पर्याप्तबादर-वायुकायिक-एकेन्द्रिय के वैक्रियशरीर होता है, अथवा अपर्याप्त - बादर - वायुकायिक- एकेन्द्रिय के होता है ? [उ.] गौतम ! पर्याप्त- बादर - वायुकायिक- एकेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, अपर्याप्तबादर-वायुकायिकएकेन्द्रियों के वैक्रियशरीर नहीं होता है । १५१६. जदि पंचेंदियवेडव्वियसरीरे किं णेरइयपंचेंदियवेडव्वियसरीरे जाव किं देवपंचेंदियवेडव्वियसरीरे ? गोयमा ! णेरइयपंचेंदियवेडव्वियसरीरे वि जाव देवपंचेंदियवेडव्वियसरीरे वि । [१५१६-१ प्र.] (भगवन्!) यदि पंचेन्दियों के वैक्रियशरीर होता है तो क्या नारकपंचेन्द्रिय के

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