Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 494
________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद] [४७३ (औघिक और पर्याप्तक) इन दोनों एवं सम्मच्छिम खेचर पक्षियों की धनुषपृथक्तव की उत्कृष्ट औदारिकशरीरावगाहना (ऊंचाई) समझनी चाहिए ॥ २१३ ॥ १५१३.[१] मणुस्सोरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? . गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। [१५१३-१] भगवन् ! मनुष्यों के औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी कही गई है ? [उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट तीन गव्यूति की होती है । [२] अपज्जत्ताणं जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेजइभागं । [१५१३-२] अपर्याप्तक (मनुष्यों के औदरिकशरीर) की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की (होती है ।) [३] सम्मुच्छिमाणं जहण्णेण वि उक्कोसण वि अंगुलस्स असंखेजइभागं । [१५१३-३] सम्मूछिम (मनुष्यों के औदारिकशरीर) की जघन्यतः और उत्कृष्टतः (अवगाहना) अंगुले के असंख्यातवें भाग की (होती है ।) [४] गब्भवक्कंतियाणं पजत्ताण य जहण्णेणें अगुंलसस असंखेजइभागं, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाइं। _ [१५१३-४] गर्भज मनुष्यों के तथा इनके पर्याप्तकों के औदारिकशरीर की अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्टः तीन गव्यूति की होती है । विवेचन - सर्वविध औदारिक शरीरों की अवगाहना-सम्बन्धी प्ररूपणा - प्रस्तुत १२ सूत्रों (सू. १५०२ से १५१३) में एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय-मनुष्यों तक के सभी प्रकार के औदारिकशरीरों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना की प्ररूपणा की गई है ।' इसे सुगमता से समझने के लिए तालिका दी जा रही हैक्रम औदारिकशरीधारी जघन्य अवगाहना उत्कृष्ट अवगाहना . १. समुच्चय औदारिकशरीर की अंगुल की कुछ अधिक एक हजार योजन असंख्यातवाँ भाग २. एकेन्द्रिय के औदारिकशरीर की १. पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. १, पृ. ३३१ से ३३५ तक

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