Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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४६२ ]
[प्रज्ञापनासूत्र
[४] पजत्तापज्जत्ताण वि एवं चेव।
[१४९०-४] पर्याप्तक और अपर्याप्तक (पृथ्वीकायिकों का औदारिकशरीर-संस्थान भी इसी प्रकार (जानना चाहिए।)
१४९१.[१]आउक्काइयएगिंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! थिबुगबिंदुसंठाणसंठिए पण्णत्ते। [१४९१-१] भगवन् ! अप्कायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर का संस्थान कैसा कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (अप्कायिकों के शरीर का संस्थान) स्तिबुकबिन्दु (स्थिरजलबिन्दु) जैसा कहा गया
[२]एवं सुहुम-बायर-पजत्तापज्जत्ताण वि।
[१४९५-२] इसी प्रकार का संस्थान अप्कायिकों के सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तकों के शरीर का समझना चाहिए।
१४९२. [१] तेउक्काइयएगिंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! सूईकलावसंठाणसंठिए पण्णत्ते।
[१४९२-२] भगवन् ! तेजस्कायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है।
[उ.] गौतम ! तेजस्कायिकों के शरीर का संस्थान सूइयों के ढेर (सूचीकलाप) के जैसा कहा गया है। [२] एवं सुहम-बादर-पजत्तापजत्ताण वि।
[१४९२-२] इसी प्रकार (का संस्थान तेजस्कायिकों के) सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्तों के शरीरों का (समझना चाहिए।)
१४९३.[१] वाउक्काइयाणं पडागासंठाणसंठिए पण्णत्ते। [१४९३-१] वायुकायिक जीवों (के औदारिकशरीर) का संस्थान पताका के समान है। [२] एवं सुहुम-बायर-पजत्तापज्जत्ताण वि।
[१४९३-२] इसी प्रकार का संस्थान (वायुकायिकों के) सूक्ष्म, बारद, पर्याप्तक और अपर्याप्तकों के शरीरों का भी समझना चाहिए।
१४९४.[१] वणस्सइकाइयाणं णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते।