Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद]
[४६९
[२] एवं अपजत्तयाण वि पजत्तयाण वि ।
[१५०४-२] इसी प्रकार अपर्याप्तक एवं पर्याप्तक, (पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक-शरीरों) की भी (अवगाहना इतनी ही समझनी चाहिए ।)
[३] एवं सुहुमाण वि पज्जत्तापज्जत्ताणं ।
[१५०४-३] इसी प्रकार सूक्ष्म पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक-(पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीरों) की (अवगाहना) भी समझनी चाहिए ।
[४] बादराणं पजत्तापजत्ताण वि एवं । एसो णवओ भेदो ।
[१५०४-४] बादर पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक (पृ० ए० औदारिकशरीरों) की (अवगाहना की वक्तव्यता) भी इसी प्रकार (समझनी चाहिए ।) (इस प्रकार पृथ्वीकायिकों के शरीरावगाहनासम्बन्धी) ये नौ भेद (आलापक) हुए ।
१५०५. जहा पुढविक्काइयाणं तहा आउक्काइयाण वि तेउक्काइयाण वि वाउक्काइयाण वि । . [१५०५] जिस प्रकार पृथ्वीकायिकों के (औदारिकशरीरावगाहना-सम्बन्धी ९ आलापक-भेद हुए,) उसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवों के भी (औदारिकशरीरावगाहना-सम्बन्धी) आलापक कहने चाहिए ।
१५०६.[१] वणस्सइकाइयओरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं । [१५०६-१ प्र.] भगवन् ! वनस्पतिकायिकों के औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी है ?
[उ.] गौतम ! (उसकी अवगाहना) जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार योजन की है।
[२] अपजत्तगाणं जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेजइभागं । - [१५०६-२] (वनस्पतिकायिक) अपर्याप्तकों (के औदारिकशरीर) की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना भी अंगुल के असंख्यातवें भाग की है।
[३] पजत्तगाणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभाग, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं। · [१५०६-३] (वनस्पतिकायिक) पर्याप्तकों (के औदारिकशरीर) की (अवगाहना) जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग (और) उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार योजन की है ।
[४] बादराणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगंजोयणसहस्सं । पज्जत्तण