Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 488
________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान - पद ] सम्मूच्छिम स्थलचर, खेचर ति. पं. औदारिकशरीर पर्याप्त अपर्याप्त हुंडकसंस्थान १२. स्थलचर चतुष्पद, उरः परिसर्प, भुजपरिसर्प ति. पं. पर्याप्त अपर्याप्त १३. खेचर ति. पं. पर्याप्त अपर्याप्त औदारिकशरीर [ ४६७ छहों प्रकार के संस्थान छहों प्रकार के संस्थान छहों प्रकार के संस्थान १४. मनुष्य पंचेन्द्रिय, गर्भज, पर्याप्त अपर्याप्त औदारिकशरीर १५. सम्मूच्छिम मनुष्य पं. औदारिकशरीर, पर्याप्त अपर्याप्त हुंडकसंस्थान ' मसूरचंद आदि शब्दों के विशेषार्थ - मसूरचंदसंठाण - मसूर एक प्रकार का धान्य होता है, जिसकी दाल बनती है । मसूर का चन्द्र अर्थात् चन्द्राकार अर्थात् (दाल) मसूरचन्द्र ; उसके समान आकार । थिबुगबिन्दुसंठाण- स्तिबुकबिन्दु - पानी के बुदबुद जैसा होता है, जो बूंद वायु आदि के द्वारा इधर-उधर बिखरे या फैले नहीं, जमा हुआ हो, वह स्तिबुकबिन्दु कहलाता है, उसके जैसा आकार। नाना संठाणसंठियादेश, जाति और काल आदि के भेद से उनके आकार में भिन्नता होने से विविध प्रकार के आकार वाले । १. पण्णवणासुत्तं ( मूलपाठ - टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. ३३१ से ३३३ तक २. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति पत्र ४११ संस्थान : प्रकार और स्वरूप- शरीर की आकृति या रचना - विशेष को संस्थान कहते हैं । उसके ६ प्रकार हैं- (१) समचतुरस्र, (२) न्यग्रोध - परिमण्डल, (३) सादि (स्वाति), (४) वामन, (५) कुब्जक और (६) हुण्डकसंस्थान । छहों का स्वरूप इस प्रकार है- (१) समचतुरस्त्र - जिस शरीर के चारों ओर के चारों अस्र-कोण या विभाग सामुद्रिकशास्त्र में कथित लक्षणों के अनुसार सम हों, वह समचतुरस्रसंस्थान है, ( २ ) न्यग्रोध-परिमण्डल - न्यग्रोध का अर्थ है- वट या बड़ । जैसे वटवृक्ष का ऊपरी भाग विस्तीर्ण या पूर्णोपेत होता है और नीचे का भाग हीन या संक्षिप्त होता है, वैसे ही जिस शरीर के नाभि के ऊपर का भाग पूर्णप्रमाणोपेत हो, किन्तु नीचे का भाग (निचले अवयव) हीन या संक्षिप्त हों, वह न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान है । (३) सादिसंस्थान - सादि शब्द में जो 'आदि' शब्द है, वह नाभि के नीचे के भाग का वाचक है । नाभि के अधस्तन-भागरूप आदि सहित, जो संस्थान हो, वह 'सादि' कहलाता है । आशय यह है कि जो संस्थान नाभि के नीचे प्रमाणोपेत हो, किन्तु जिसमें नाभि के ऊपरी भाग हीन हों, वह सादिसंस्थान है । कई आचार्य इसे साचीसंस्थान कहते हैं । साची कहते हैं - शाल्मली (सेमर) वृक्ष को । शाल्मली वृक्ष का स्कन्ध (नीचे का भाग) अतिपुष्ट होता है, किन्तु ऊपर का भाग तदनुरूप विशाल या पुष्ट नहीं होता, उसी तरह जिस शरीर का अधोभाग परिपुष्ट व परिपूर्ण हो और ऊपर का भाग हीन हो, वह साचोसंस्थान है । ( ४ ) कुब्जकसंस्थानजिस शरीर के सिर, गर्दन, हाथ-पैर आदि अवयव आकार में प्रमाणोपेत हों, किन्तु वक्षस्थल, उदर आदि टेढ़े-मेढ़े बेडौल या कुबड़े हों, वह कुब्जकसंस्थान है । ( ५ ) वामनसंस्थान - जिस शरीर के छाती, पेट आदि अवयव प्रमाणोपेत हों, किन्तु हाथ-पैर आदि अवयव हीन हों, जो शरीर बौना हो, वह वामनसंस्थान है ।

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