Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 486
________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद] [ ४६५ _ [१४९८-३] सम्मूर्छिम-जलचरों (तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय) के औदारिकशरीर हुण्डसंस्थान वाले हैं। उनके पर्याप्तक, अपर्याप्तकों के (औदारिकशरीर) भी इसी प्रकार (हुण्डकसंस्थान) के होते हैं। [४] गब्भवक्कंतियजलयरा छव्विहसंठाणसंठिया। एवं पजत्तापजत्तगा वि। [१४९८-४] गर्भज-जलचर (तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों के औदारिकशरीर) छहों प्रकार के संस्थान वाले हैं। इसी प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक (गर्भज-जलचर-तिर्यञ्च-पंचेन्द्रियों के औदारिकशरीर भी (छहों संस्थान वाले समझने चाहिए।) १४९९.[१] एवं थलयराण वि णव सुत्ताणि। [१४९९-१] इसी प्रकार स्थलचर- (तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-संस्थानों) के नौ सूत्र (भी पूर्वोक्त प्रकार से समझ लेने चाहिए।) [२] एवं चउप्पयथलयराण वि उरपरिसप्पथलयराण वि भुयपरिसप्पथलयराण वि। [१४९९-२] इसी प्रकार चतुष्पद-स्थलचरों, उर:परिसर्प-स्थलचरों एवं भुजपरिसर्प-स्थलचरों के औदारिकशरीर संस्थानों के (नौ-नौ सूत्र) भी (पूर्वाक्त प्रकार से समझ लेने चाहिए।) १५००.एवं खहयराण विणव सुत्ताणि।णवरंसव्वत्थ सम्मुच्छिमा हुंडसंठाणसंठिया भाणियव्वा, इयरे छसु वि। [१५००] इसी प्रकार खेचरों के (औदारिकशरीरसंस्थानों के) भी नौ सूत्र (पूर्वोक्त प्रकार से समझने चाहिए।) विशेषता यह है कि सम्मूर्छिम (तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों के औदारिकशरीर) सर्वत्र हुण्डकसंस्थान वाले कहने चाहिए। शेष सामान्य, गर्भज आदि के शरीर तो छहों संस्थानों वाले होते हैं। १५०१.[१] मणूसपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते। तं जहा- समचउरंसे जाव हुंडे। [१५०१-१ प्र.] भगवन् ! मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है, जैसे- समचतुरस्र यावत् हुण्डक्संस्थान वाला । [२] पजत्तापजत्ताण वि एवं चेव । [१५०१-२] पर्याप्तक और अपर्याप्त (मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर) भी इसी प्रकार छहों संस्थान वाले होते हैं ।) [३] गब्भवक्कंतियाणं वि एवं चेव । पजत्ताऽपज्जत्तगाण वि एवं चेव ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545