Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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४३२ ]
[प्रज्ञापनासूत्र
धर्म) को समझ पाता है ?
[उ.] गौतम ! (उनमें से) कोई केवलबोधि (का अर्थ) समझता है (और) कोई नहीं समझता है । [४] जेणं भतें ! केवलं बोहिं बुज्झेजा से णं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएजा? हंता गोयमा ! जाव' रोएज्जा ।
[१४३७-४ प्र.] भगवन् ! जो केवलबोधि (का अर्थ) समझता है, (क्या) वह (उस पर) श्रद्धा करता है ? प्रतीति करता है ? (और) रुचि करता है ?
[उ.] हाँ गौतम ! (वह) श्रद्धा, प्रतीति और रुचि करता है ।
[५] जे णं भंते ! सद्दहेजा ३२ से णं आभिणिबोहियणाण-सुयणाण-ओहिणाणाणि उप्पाडेजा?
हंता गोयमा ! उप्पाडेजा।
[१४३७-५ प्र.] भगवन् ! जो श्रद्धा-प्रतीति-रुचि करता है (क्या) वह आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान उपार्जित (प्राप्त) कर सकता है ?
[उ.] हाँ गौतम ! (वह आभिनिबोधिक-श्रुत-अवधि ज्ञान) प्राप्त कर सकता है।
[६] जे णं भंते ! आभिणिबोहियणाण-सुयणाण-ओहिणाणाई उप्पाडेज्जा से णं संचाएज्जा सोलं वा जाव' पडिवजित्तए ?
गोयमा ! णो इणढे समठे।
[१४३७-६ प्र.] भगवन् ! जो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान प्राप्त करता है, (क्या) वह शील (आदि) से लेकर पोषधोपवास तक अंगीकार कर सकता है ?
[उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । १४३८. एवं असुरकुमारेसु वि जाव थणियकुमारे ।
[१४३८] इसी प्रकार (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च की, पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में से उद्वृत्त हो कर सीधा) असुरकुमारों में यावत् स्तनितकुमारों में उत्पत्ति के विषय में (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च से निरन्तर उद्वृत्त होकर उत्पन्न हुए नारक को वक्तव्यता के समान समझना चाहिए ।) १. यहाँ 'जाव' शब्द 'सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा' का सूचक है । २. '३' का अंक पत्तिएज्जा - प्रतीति और रोएज्जा - रुचि करता है शब्द का द्योतक है । ३. यहाँ जाव' शब्द (१४२०-६ में उक्त) 'सीलं वा, वयं वा, गुणं वा, वेरमणं वा, पच्चक्खाणं वा पीसहोबबासं वा' का सूचक है।