Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बीसवाँ अन्तक्रियापद]
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जीवों के विषय में भी समझना चाहिए । (पृथ्वीकायिकों से) विशेष (अन्तर) यह है कि (पृथ्वीकायिक जीवों के समान द्वीन्द्रिय जीव मनुष्यों में उत्पन्न होकर अन्तक्रिया नहीं कर सकते ; किन्तु) वे मनःपर्यायज्ञान तक प्राप्त कर सकते हैं ।
१४३६. [१] एवं तेइंदिय-चउर दिया वि जाव मणपज्जवनाणं उप्पाडेजा। [१४३६-१] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीव भी यावत् मनःपर्यायज्ञान प्राप्त कर सकते है। [२] जे णं भंते ! मणपजवनाणं उप्पाडेजा से णं केवलणाणं उप्पाडेज्जा ? गोयमा ! णो इणढे समढे ।
[१४३६-२] जो (विकलेन्द्रिय मनुष्यों में उत्पन्न हो कर) मनःपर्यायज्ञान प्राप्त करता है, (क्या) वह केवलज्ञान प्राप्त कर सकता है ?
[उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
१४३७. [१] पंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! पंचिंदियरितिरिक्खजोणिएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता णेरइएसु उववज्जेजा?
गोयमा ! अत्थेगइए उववजेजा, अत्थेगइए णो उववजेजा ।
[१४३७-१ प्र.] भगवन् ! (क्या) पंचेन्द्रियतिर्यञ्च पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में से उद्वृत्त होकर सीधा नारकों में उत्पन्न होता है ?
[उ.] गौतम ! (उनमें से) कोई (पंचेन्द्रियतिर्यज्य जीव) उत्पन्न होता है और कोई उत्पन्न नहीं होता
[२] जे णं भंते ! उववजेजा से णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए ? गोयमा ! अत्थेगइए लभेजा, अत्थेगइए णो लभेजा ।
[१४३७-२ प्र.] भगवन् ! जो (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च नारकों में) उत्पन्न होता है, क्या वह केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण प्राप्त करता है ?
[उ.] गौतम ! (उनमें से) कोई प्राप्त करता है और कोई प्राप्त नहीं करता है । [३] जे णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए से णं केवलं बोहिं बुझेजा। गोयमा ! अत्यंगइए बुझेजा, अत्थेगइए नो बुझेजा । [१४३७-३ प्र.] भगवन् ! जो केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण प्राप्त करता है, (क्या) वह केवलबोधि (केवलिप्रज्ञप्त