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________________ बीसवाँ अन्तक्रियापद] [ ४३१ जीवों के विषय में भी समझना चाहिए । (पृथ्वीकायिकों से) विशेष (अन्तर) यह है कि (पृथ्वीकायिक जीवों के समान द्वीन्द्रिय जीव मनुष्यों में उत्पन्न होकर अन्तक्रिया नहीं कर सकते ; किन्तु) वे मनःपर्यायज्ञान तक प्राप्त कर सकते हैं । १४३६. [१] एवं तेइंदिय-चउर दिया वि जाव मणपज्जवनाणं उप्पाडेजा। [१४३६-१] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीव भी यावत् मनःपर्यायज्ञान प्राप्त कर सकते है। [२] जे णं भंते ! मणपजवनाणं उप्पाडेजा से णं केवलणाणं उप्पाडेज्जा ? गोयमा ! णो इणढे समढे । [१४३६-२] जो (विकलेन्द्रिय मनुष्यों में उत्पन्न हो कर) मनःपर्यायज्ञान प्राप्त करता है, (क्या) वह केवलज्ञान प्राप्त कर सकता है ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । १४३७. [१] पंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! पंचिंदियरितिरिक्खजोणिएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता णेरइएसु उववज्जेजा? गोयमा ! अत्थेगइए उववजेजा, अत्थेगइए णो उववजेजा । [१४३७-१ प्र.] भगवन् ! (क्या) पंचेन्द्रियतिर्यञ्च पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में से उद्वृत्त होकर सीधा नारकों में उत्पन्न होता है ? [उ.] गौतम ! (उनमें से) कोई (पंचेन्द्रियतिर्यज्य जीव) उत्पन्न होता है और कोई उत्पन्न नहीं होता [२] जे णं भंते ! उववजेजा से णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए ? गोयमा ! अत्थेगइए लभेजा, अत्थेगइए णो लभेजा । [१४३७-२ प्र.] भगवन् ! जो (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च नारकों में) उत्पन्न होता है, क्या वह केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण प्राप्त करता है ? [उ.] गौतम ! (उनमें से) कोई प्राप्त करता है और कोई प्राप्त नहीं करता है । [३] जे णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए से णं केवलं बोहिं बुझेजा। गोयमा ! अत्यंगइए बुझेजा, अत्थेगइए नो बुझेजा । [१४३७-३ प्र.] भगवन् ! जो केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण प्राप्त करता है, (क्या) वह केवलबोधि (केवलिप्रज्ञप्त
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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