Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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.. बीसवाँ अन्तक्रियापद ]
१४३९. एंगिदिय-विगलिंदिएसु जहा पुढविक्काइए (सू. १५२८ [१३])।
[१४३९] एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों में (पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की) उत्पत्ति की वक्तव्यता (सू. १४२८ - [१-३] में उक्त) पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति के समान समझ लेनी चाहिए ।
१४४०. पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु मणूसेसु य जहा णेरइए (सू. १४२०-२२) ।
[१४४०] पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों और मनुष्यों में (सू. १४२०-२२ में) जैसे नैरयिक के (उत्पाद की प्ररूपणा की गई) वैसे ही पंचेन्द्रियतिर्यञ्च की प्ररूपणा करनी चाहिए ।
१४४१. वाणमंतर-जाइसिय-वेमाणिएसु जहा णेरइएसु उववज्जेज्जत्ति पुच्छा भणिया (सु. १४३७ ) ।
[१४४१] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में पंचेन्द्रियतिर्यञ्च के उत्पन्न होने (आदि) को पुच्छा का कथन उसी प्रकार किया गया है, जैसे (सू. १४३७ में) नैरयिकों में उत्पन्न होने का ( कथन किया गया है ।
१४४२. एवं मणूसे वि ।
[१४४२] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक के उत्पाद का कथन (चौवीस दण्डकों में (सू.१४२३२६ में) असुरकुमार (के उत्पाद) के समान है ।
विवेचन - असुरकुमार से लेकर वैमानिक तक चौवीस दण्डकों में उत्पत्ति आदि सम्बन्धी चर्चा - प्रस्तुत २१ सूत्रों (१४२३ से १४४३ तक) में असुरकुमार से लेकर अवशिष्ट नौ प्रकार के भवनपति देव, पृथ्वीकायादि पंच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय, मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवों की नारक से वैमानिक तक 'अनन्तर उद्वृत्त होकर उत्पन्न होने की चर्चा की गई है ।
जीव
[ ४३३
नारक
उद्वृत्तद्वार का सार इस प्रकार है
www
मर कर सीधा कहाँ उत्पन्न हो
सकता है ?
पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च या मनुष्य में
१.
पण्णवणासुतं (मूलपाठ - टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. ३२२ से ३२४ तक २. पण्णवणासुत्तं (परिशिष्ट-प्रस्तावना सहित) भा. २, पृ. ११४
मर कर नये जन्म में
धर्मश्रवणादि की संभावना
देशविरति के शीलादि और
अवधिज्ञान एवं मोक्ष
(मनुष्यभव में)