Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ प्रज्ञापनासूत्र
[१४१४-२] (अनन्तरागत) रत्नप्रभापृथ्वी के नारक भी इसी प्रकार ( अन्तक्रिया करते हैं) यावत् बालुकाप्रभापृथ्वी के नारक भी ( इसी प्रकार अन्तक्रिया करते हैं ।)
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[ ३ ] अणंतरागता णं भंते ! पंकप्पभापुढविणेरड्या एगसमएणं केवतिया अंतकिरियं पकरेंति ?
गोयमा ! जहणेणं एक्को वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं दस ।
[१४१४-३ प्र.] भगवन् ! अनन्तरागत पंकप्रभापृथ्वी के कितने नारक एक समय में अन्तक्रिया करते
हैं ?
[उ.] गौतम ! (वे एक समय में) जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट दस ( अन्तक्रिया करते हैं ।) १४१५. [ १ ] अणंतरागया णं भंते ! असुरकुमारा एगसमएणं केवइया अंतकिरियं पकरेंति ? गोयमा ! जहणेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं दस ।
[१४१५-१ प्र.] भगवन् ! अनन्तरागत कितने असुरकुमार एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? [उ.] गौतम ! (वे एक समय में) जघन्य एक, दो या तीन (और) उत्कृष्ट दस ( अन्तक्रिया करते
हैं ।)
[ २ ] अणंतरागयाओ णं भंते ! असुरकुमारीओ एगसमएणं केवतियाओ अंतकिरियं पकरेंति ? गोयमा ? जहणेणं एक्का वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं पंच ।
[१४१५-२ प्र.] भगवन् ! अनन्तरागता कितनी असुरकुमारियाँ एक समय में अन्तक्रिया करती हैं ? [उ.] गौतम ! (वे एक समय में) जघन्य एक, दो या तीन (और) उत्कृष्ठ पांच ( अन्तक्रिया करती
हैं ।)
[३] एवं जहा असुरकुमारा सदेवीया तहा जाव थणियकुमारा ।
[१४१५-३] इसी प्रकार जैसे अनन्तरागत असुरकुमारों तथा उनकी देवियों की ( संख्या एक समय में अन्तक्रिया करने को बताई है) उतनी हो स्तनितकुमारों (तथा उनकी देवियों) तक की संख्या ( अन्तक्रिया के सम्बन्ध में समझ लेना चाहिए ।)
१४१६. [ १ ] अणंतरागया णं भंते ! पुढविक्काइया एगसमएणं केवतिया अंतकिरियं पकरेंति ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि ।
[१४१६-१ प्र.] भगवन ! कितने अनन्तरागत पृथ्वीकायिक एक समय में अन्तक्रिया करते हैं?