Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र
१,२,३
- २०१
४२० ] ज्योतिष्क देव
१,२,३ ज्योतिष्क देवियाँ .
. २० वैमानिक देव
१,२,३
१०८ वैमानिक देवियाँ
१,२,३ अनन्तरागत जीव : पूर्वभव-पर्याय की अपेक्षा से - यद्यपि नारक आदि जीव नरक आदि से निकल कर सीधे मनुष्यभव में आ जाने के बाद नारक आदि नहीं रहते, वे सब मनुष्य हो जाते हैं, फिर भी उन्हे शास्त्रकार ने जो अनन्तरागत आदि कहा है, वह कथन पूर्वभव-पर्याय की अपेक्षा से समझना चाहिए । वस्तुतः अनन्तरागत नारक आदि से तात्पर्य उन जीवों से है, जो पूर्वभव में नारक आदि थे और वहाँ से निकल कर सीघे मनुष्यभव में आ कर मनुष्य बने हैं । चतुर्थ : उद्वृत्तद्वार
१४१७. णेरइए णं भंते ! णेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता णेरइएसु उववजेजा? गोयमा ! णे इणढे समठे ।
[१४१७ प्र.] भगवन् ! नारक जीव, नारकों में से उद्धर्तन (निकल) कर क्या (सीधा) नारकों में उत्पन्न होता है?
[उ.] गौतम ! यह अर्थ (बात)समर्थ (शक्य) नहीं है । १४१८. णेरइए णं भंते ! णेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता असुरकुमारेसु उववजेजा? गोयमा ! णे इणढे समढे ।
[१४१८ प्र.] भगवन् ! नारक जीव नारकों में से निकल कर क्या (सीधा) असुरकुमारों में उत्पन्न हो सकता है ?
[उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । १४१९. एवं निरंतरं जाव चउरि दिएसु पुच्छा । गोयमा ! णो इणढे समढे ।
१. २.
पण्णवणासुत्तं (परिशिष्ट) भा. २, पृ. ११३ (क) प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक ३९८
(ख) प्रज्ञापना. प्रमेयबोधिनी. भा. ४, पृ. ४९८