Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
सत्तरहवाँ लेश्यापद : चतुर्थ उद्देशक]
[३२९
पण्णत्ता ।
[१२२८ प्र.] भगवन् ! कापोतलेश्या वर्ण से कैसी है ?
[१२२८ उ.] गौतम ! जैसे कोई खदिर (खैर-कत्था) के वृक्ष का सार भाग (मध्यवर्ती भाग) हो, खैर का सार हो, अथवा धमास वृक्ष का सार हो, ताम्बा हो, या ताम्बे का कटोरा हो, या ताम्बे की फली हो, या बैंगन का फूल हो, कोकिलच्छद (तैलकण्टक) वृक्ष का फूल हो, अथवा जवासा का फूल हो, अथवा कलकुसुम हो, (इनके समान वर्ण वाली कापोतलेश्या है।)
[प्र.] भगवन् ! क्या कपोतलेश्या ठीक इसी रूप की है ?
[उ.] यह अर्थ समर्थ नहीं है। कापोतलेश्या वर्ण से इससे भी अनिष्टतर यावतृ अमनाम (अत्यन्त . अवांछनीय) कही है। ।
१२२९. तेउलेस्सा णं भंते ! करिसिया वण्णेणं पण्णत्ता ?
गोयमा ! से जहाणामए ससरुहिरे इ वा उरभरुहिरे इ. वा वराहरुहिरे इ वा संबररुहिरे इ वा मणुस्सरुहिरे इ वा बालिंदगोवे इ वा बालदिवागरे इ वा संझब्भरागे इ वा गुंजद्धरागे इ वा जाइहिंगुलए इ वा पवालंकुरे इ वा लक्खारसे इ वा लोहियक्खमणी इ वा किमिरागकंबले इ वा गयतालुए इ वा चीणपिट्ठरासी इ वा पालियायकुसुमे इ वा जासुमणाकुसुमे इ वा किंसुयपुप्फरासी इ वा रत्तुप्पले इ वा रत्तासोगे इ वा रत्तकणवीरए इ वा रत्तबंधुजीवए इ वा ?
भवेयारूवा ?
गोयमा ! णो इणढे समढे, तेउलेस्सा णं एत्तो इट्ठतरिया चेव जाव मणामतरिया चेव वन्नेणं पण्णत्ता।
[१२२९ प्र.] भगवन् ! तेजोलेश्या वर्ण से कैसी है ?
[१२२९ उ.] गौतम ! जैसे कोई खरगोश का रक्त हो, मेष (मेंढे) का रूधिर हो, सूअर का रक्त हो, सांभर का रूधिर हो, मनुष्य का रक्त हो, या इन्द्रगोप (वीरबहूटी) नामक कीड़ा हो, अथवा बाल-इन्द्रगोप हो, या बाल-सूर्य (उगते समय का सूरज) हो, सन्ध्याकालीन लालिमा हो, गुंजा (चिरमी) के आधे भाग की लालिमा हो, उत्तम (जातिमान्) हींगलू हो, प्रवाल (मूंगे) का अंकुर हो, लाक्षारस हो, लोहिताक्षमणि हो, किरमिची रंग का कम्बल हो, हाथी का तालु (तलुआ) हो, चीन नामक रक्तद्रव्य के आटे की राशि हो, पारिजात का फूल हो, जपापुष्प हो, किंशुक (टेसू) के फूलों की राशि हो, लाल कमल हो, लाल अशोक हो, लाल कनेर हो, अथवा लालबन्धुजीवक हो, (ऐसे रक्त वर्ण की तेजोलेश्या होती है।)
[प्र.] भगवन् ! क्या तेजोलेश्या इसी रूप की होती है ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। तेजोलेश्या इन से भी इष्टतर, यावत् (अधिक कान्त, अधिक