Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
४०४]
नोअवसिद्धिक-अवस्था में रहता है ?
- बीसवाँ द्वार ॥२०॥
[ १३९४ उ.] गौतम ! (वह) सादि - अपर्यवसित है ।
विवेचन - बीसवाँ भवसिद्धिकद्वार प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. १३९२ से १३९४ तक) में भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक और नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक जीवों के अवस्थान का कालमान प्ररूपित किया गया है।
भवसिद्धिक का कालमान - भवसिद्धिक ( भव्य ) अनादि - सपर्यवसित (सान्त) है। भव्यत्व भाव पारिणामिक है, इसलिए वह अनादि है, किन्तु मुक्ति प्राप्त होने पर उसका सद्भाव नहीं रहता, इसलिए सपर्यवसित है।
अभवसिद्धिक का कालमान- यह भी पारिणामिक भाव होने से अनादि है और उसका (अभव्यत्व का) कभी अन्त नहीं होता। इसलिए अनन्त है ।
नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक का कालमान- ऐसा जीव सिद्ध ही होता है, इसलिए अपर्यवसित
होता है ।"
इक्कीसवाँ अस्तिकायद्वार
[ प्रज्ञापनासूत्रं
१३९५. धम्मत्थिकाए णं० पुच्छा ।
गोयमा ! सव्वद्धं ।
[१३९५ प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय कितने काल तक लगातार धर्मास्तिकायरूप में रहता है ?
[१३९५. उ.] गौतम ! वह सर्वकाल रहता है ।
१३९६. एवं जाव अद्धासमए । दारं २१ ॥
[१३९६] इसी प्रकार यावत् (अधर्मास्तिकाय, आकाशस्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और) अद्धासमय (कालद्रव्य) के अवस्थानकाल के लिये भी समझना चाहिए।
- इक्कीसवाँ द्वार ॥२१॥
विवेचन - इक्कीसवाँ अस्तिकायद्वार प्रस्तुत दो सूत्रों ( १३९५ - १३९६ ) के धर्मास्तिकायादि ६ द्रव्यों के स्व-स्वरूप में अवस्थानकाल की चर्चा की गई है।
-
१. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३९५
२. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३९५
धर्मास्तिकायादि षट् द्रव्यों का अवस्थानकाल- धर्मास्तिकाय आदि छहों द्रव्य अनादि - अनन्त हैं । ये सदैव अपने स्वरूप में अवस्थित रहते हैं ।