Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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एगूणवीसइमं सम्मत्तपयं
उन्नीसवाँ सम्यक्त्वपद
समुच्चय जीवों के विषय में दृष्टि की प्ररूपणा
१३९९. जीवा णं भंते ! किं सम्मद्दिट्ठी मिच्छहिंट्ठी सम्मामिच्छद्दिट्ठी ? गोयमा ! जीवा सम्मद्दिट्ठी वि मिच्छद्दिट्ठी वि सम्मामिच्छद्दिट्ठी वि । [१३९९ प्र.] भगवन् ! जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं अथवा सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं ?
[१३९९ उ.] गौतम ! जीव सम्यग्दृष्टि भी हैं, मिथ्यादृष्टि भी हैं और सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी हैं । विवेचन - समुच्चय जीवों के विषय में दृष्टि की प्ररूपणा प्रस्तुत सूत्र में बताया है कि समुच्च्य जीवों में सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि, ये तीनों ही दृष्टियाँ पाई जाती हैं ।
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चौवीस दण्डकवर्ती जीवों और सिद्धों में सम्यक्त्वप्ररूपणा
१४००. एवं णेरड्या वि ।
[१४००] इसी प्रकार नैरयिक जीवों में भी तीनों दृष्टियाँ होती हैं ।
१४०१. असुरकुमारा वि एवं चेव जाव थणियकुमारा ।
[१४०१] असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक (के भवनवासी देव) भी इसी प्रकार (सम्यग्दृष्टि भी, मिथ्यादृष्टि भी और सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी होते हैं) ।
१४०२. पुढविक्काइयाणां पुच्छा ।
गोयमा ! पुढविक्काइया णो सम्मद्दिट्ठी, मिच्छद्दिट्ठी, णो सम्मामिच्छद्दिट्ठी । एवं जाव वणस्सइकाइया |
[१४०२ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव सम्यग्दृष्टि होते हैं, मिथ्यादृष्टि होते हैं या सम्यग्मिथ्यादृष्टि होते हैं ? यह प्रश्न है ।
[१४०२ उ.] गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव सम्यग्दृष्टि नहीं होते, वे मिथ्यादृष्टि होते हैं, सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते। इसी प्रकार यावत् (अप्कायिकों, तेजस्कायिकों, वायुकायिकों एवं ) वनस्पतिकायिकों के सम्यक्त्व की प्ररूपणा समझ लेनी चाहिए।
१४०३. बेइंदियाणं पुच्छा ।
गोया ! बेइंदिया सम्मद्दिट्ठी वि, मिच्छद्दिट्ठी वि, णो सम्मामिच्छद्दिट्ठी । एवं जाव चउरेंदिया ।