Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सत्तरहवाँ लेश्यापद : चतुर्थ उद्देशक
[३३१ मणुण्णतरिया चेव मणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता ।
[१२३१ प्र.] भगवन् ! शुक्ललेश्या वर्ण से कैसी है ?
[१२३१ उ.] गौतम ! जैसे कोई अंकरत्न हो, शंख हो, चन्द्रमा हो, कुन्द (पुष्प) हो, उदक (स्वच्छ जल) हो, जलकण हो, दही हो, जमा हुआ दही (दधिपिण्ड) हो, दूध हो, दूध का उफान हो, सूखी फली हो, मयूरपिच्छ की मिंजी हो, तपा कर धोया हुआ चांदी का पट्ट हो, शरद् ऋतु का बादल हो, मुकुद का पत्र हो, पुण्डरीक कमल का पत्र हो, चावलों (शालिधान्य) के आटे का पिण्ड (राशि) हो, कुटज के पुष्पों की राशि हो, सिन्धुवार के श्रेष्ठ फूलों की माला हो, श्वेत अशोक हो, श्वेत कनेर हो, अथवा श्वेत बन्धुजीवक हो, (इनके समान शुक्ललेश्या श्वेतवर्ण की कही है।)
[प्र.] भगवन् ! क्या शुक्ललेश्या ठीक ऐसे ही रूप वाली है ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। शुक्ललेश्या इनसे भी वर्ण में इष्टतर यावत् अधिक मनाम होती
१२३२. एयाओ णं भंते ! छल्लेस्साओ कतिसु वण्णेसु साहिजति ?
गोयमा ! पंचसु वण्णेसु साहिजति । तं जहा- कण्हलेसा कालएणं वण्णेणं साहिजति, णीललेस्सा णीलएणं वण्णेणं साहिज्जति, काउलेस्सा काललोहिएणं वण्णेणं साहिज्जति, तेउलेस्सा लोहिएणं वण्णेणं साहिज्जइ, पम्हलेस्सा हालिद्दएणं वण्णेणं साहिजइ, सुक्कलेस्सा सुक्किलएणं वण्णेणं साहिज्जइ ।
[१२३२ प्र.] भगवन् ! ये छहों लेश्याएँ कितने वर्णों द्वारा कही जाती है ?
[१२३२ उ.] गौतम ! (ये) पांच वर्णों वाली है। वे इस प्रकार हैं - कृष्णलेश्या काले वर्ण द्वारा कही जाती है, नीललेश्या नीले वर्ण द्वारा कही जाती है, कापोतलेश्या काले और लाल वर्ण द्वारा कही जाती है, तेजोलेश्या लाल वर्ण द्वारा कही जाती है, पद्मलेश्या पीले वर्ण द्वारा कही जाती है और शुक्ललेश्या श्वेत (शुक्ल) वर्ण द्वारा कही जाती है।
विवेचन - द्वितीय : वर्णाधिकार - प्रस्तुत सात सूत्रों (सू. १२२६ से १२३२ तक) में पृथक्-पृथक् छहों लेश्याओं के वर्गों की विभिन्न वर्ण वाली वस्तुओं से उपमा देकर प्ररूपणा की गई है।
कृष्णलेश्या के लिए अनिष्टतर आदि पांच विशेषण क्यों ? - कृष्णलेश्या वर्षारम्भकालीन काले कजरारे मेघ आदि उल्लिखित काली वस्तुओं से भी अधिक अनिष्ट होती है, यह बताने के लिए कृष्णलेश्या के लिए अनिष्टतर विशेषण का प्रयोग किया गया है। किन्तु कस्तूरी जैसी कोई-कोई वस्तु अनिष्ट (काली) होने पर भी कान्त (कमनीय) होती है, परन्तु कृष्णलेश्या ऐसी भी नहीं है। यह बताने हेतु कृष्णलेश्या के लिए अकान्ततर (अत्यन्त अकमनीय) विशेषण का प्रयोग किया गया है। कोई वस्तु अनिष्ट और अकान्त होने पर भी किसी को प्रिय होती है, किन्तु कृष्णलेश्या प्रिय भी नहीं होती, यह बताने हेतु कृष्णलेश्या के लिए अप्रियतर