Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
अठारहवाँ कायस्थितिपद]
[३७३
अव्यवहारराशि के अन्तर्गत सूक्ष्मनिगोदिया जीव की अनादिता होने से उससे असंख्यातकाल का कथन सुसंगत नहीं हो सकता।
क्षेत्र की अपेक्षा से अंगुल के असंख्यातवें भाग की व्याख्या - इसका अभिप्राय यह है कि अंगुल के असंख्यातवें भाग में जितने आकाशप्रदेश होते हैं, उनका एक-एक समय में एक-एक के हिसाब से अपहरण करने पर जितनी उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी व्यतीत हों, उतनी उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी यहां जानना चाहिए। प्रश्न होता है- अंगुल के असंख्यातवें भाग जितने स्वल्प क्षेत्र के परमाणुओं का अपहरण करने में असंख्यात उत्सर्पिणी एवं अवसर्पिणी काल किस प्रकार व्यतीत हो सकता है ? इसका समाधान यह है कि क्षेत्र, काल की अपेक्षा बहुत सूक्ष्म होने से ऐसा हो सकता है। कहा भी है- काल सूक्ष्म होता है, किन्तु क्षेत्र उससे भी अधिक सूक्ष्म होता है। यह कथन बादर वनस्पतिकाय की अपेक्षा से है, क्योंकि बादर वनस्पतिकाय के अतिरिक्त अन्य . किसी बादर की इतने काल की स्थिति सम्भव नहीं है।' पंचम योगद्वार
१३२१. सजोगी णं भंते ! सजोगि त्ति कालओ केवचिरं होई ?
गोयमा ! सजोगी दुविहे पण्णत्ते । तं जहा- अणादीए वा अपजवसिए १ अणादीए वा सपज्जवसिए २।
[१३२१ प्र.] भगवन् ! सयोगी जीव कितने काल तक सयोगीपर्याय में रहता है ?
[१३२१ उ.] गौतम ! सयोगी जीव दो प्रकार के कहे हैं। वे इस प्रकार- १. अनादि-अपर्यवसित और २. अनादि-सपर्यवसित ।
१३२२. मणजोगी णं भंते ! मणजोगि त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं । [१३२२ प्र.] भगवन् ! मनोयोगी कितने काल तक मनोयोगी अवस्था में रहता है ?
[१३२२ उ.] गौतम ! (वह) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक मनोयोगी अवस्था में रहता है।
१३२३. एवं वयजोगी वि।
१. (क) वही, मलय. वृत्ति, पत्रांक ३८२
(ख) प्रज्ञापना. प्रमेयबोधिनी भा. ४, पृ. ३७४ २. (क) वही, मलय. वृत्ति, पत्रांक ३८२
(ख) प्रज्ञापना. प्रमेयबोधिनी. भा. ४, पृ. ३७७