Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
सत्तरहवाँ लेश्यापद : छठा उद्देशक ]
[ ३४९
[ ४ ] एवं कम्मभूमयमणूसीण वि ।
[१२५७-४] इसी प्रकार कर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियों की भी लेश्याविषयक प्ररूपणा करनी चाहिए। [ ५ ] भरहेरवयमणूसाणं भंते ! कति लेस्साओ पण्णत्ताओ ?
गोयमा ! छ। तं जहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा ।
[१२५७–५ प्र.] भगवन् ! भरतक्षेत्र और ऐरवतक्षेत्र के मनुष्यों में कितना लेश्याएँ पाई जाती हैं ? [१२५७-५] गौतम ! ( उनमें भी) छह (लेश्याएँ होती) यथा - कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । [६] एवं मणुस्सीण वि ।
[१२५७-६] इसी प्रकार ( इन क्षेत्रों की) मनुष्यस्त्रियों में भी (छह लेश्याओं की प्ररूपणा करनी चाहिए ।)
[ ७ ] पुव्वविदेह-अवरविदेहकम्मभूमयमणूसाणं भंते ! कति लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छ लेस्साओ । तं जहा- कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा ।
[१२५७-७ प्र.] भगवन् ! पूर्वविदेह और अपरविदेह के कर्मभूमिज मनुष्यों में कितनी लेश्याएँ होती हैं? [१२५७-७ उ.] गौतम ! ( इन दोनों क्षेत्रों की) छह लेश्याएँ कही गई हैं- कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । [८] एवं मणूसीण वि ।
[१२५७-८] इसी प्रकार ( इन दोनों क्षेत्रों की ) मनुष्यस्त्रियों में भी (छह लेश्याएँ समझनी चाहिए ।) [ ९ ] अकम्मभूमयमणूसाणं पुच्छा ?
गोयमा ! चत्तारि लेस्साओ पण्णत्ताओ । तं जहा - कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा |
[१२५७-९] भगवन् ! अकर्मभूमिज मनुष्यों में कितनी लेश्याएँ कही गई हैं ?
[१२५७-९] गौतम ! ( उनमें ) चार लेश्याएँ कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं- कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या ।
[ १० ] एवं अकम्पभूमयमणूसीण वि ।
[१२५७-१०] इसी प्रकार अकर्मभूमिज मनुष्यस्त्रियों में भी ( चार लेश्याएँ कहनी चाहिए।)
[ ११ ] एवं अंतरदीवयमणूसाणं मणूसीण वि ।
[१२५७-११] इसी प्रकार अन्तरद्वीपज मनुष्यों में और मनुष्यस्त्रियों में भी ( चार लेश्याएँ समझनी
चाहिए ।)