Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अठारहवाँ कायस्थितिपद ]
[ ३६५
न्द्र पर्याप्त की कायस्थिति - उत्कृष्ट संख्यात रात्रि-दिन तक त्रीन्द्रिय पर्याप्त इसी रूप में रहता है। त्रीन्द्रिय जीव की भवस्थिति उत्कृष्ट ४९ दिन की होती है। अतएव वह लगातार कतिपय भव करे तो भी सब मिलकर वे संख्यात रात्रि - दिन ही होते हैं।
चतुरिन्द्रिय पर्याप्त की कायस्थिति - उत्कृष्ट संख्यात मास तक वह चतुरिन्द्रिय पर्याप्तपर्याय से युक्त रहता है, क्योंकि चतुरिन्द्रिय की उत्कृष्ट भवस्थिति ६ महीने की है। अतएव वह लगातार कतिपय भव करे तो भी संख्यात मास ही होते हैं।"
चतुर्थ कायद्वार
१२८५. सकाइए णं भंते ! सकाइए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?
गोयमा ! सकाइए दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - अणादीए वा अपज्जवसिए १ अणादीए वा सपज्जवसिए २ ।
[१२८५ प्र.] भगवन् ! सकायिक जीव सकायिकरूप में कितने काल तक रहता है ?
[१२८५ उ.] गौतम ! सकायिक दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार - (१) अनादि - अनन्त और (२) अनादि - सान्त ।
१२८६. पुढविक्काइए णं ० पुच्छा ?
गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं, असंखेज्जाओ उस्सप्पिणिओपप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा ।
[१२८६ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कितने काल तक लगातार पृथ्वीकायिक पर्याययुक्त रहता है?
[१२८६ उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक; (अर्थात् ) काल की अपेक्षा- असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्णियों तक (पृथ्वीकायिक पर्याय वाला बना रहता है।) क्षेत्र से - असंख्यात लोक तक ।
१२८७. एवं आउ-तेउ-वाउक्काइया वि।
[१२८७] इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक भी ( जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक अपने-अपने पर्यायों से युक्त रहते हैं ।)
१२८८. वणस्सइकाइया णं ० पुच्छा ?
गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणतं कालं, अणंताओ उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीओ
१. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३७८