Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्रं
१३०९. पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइए णं भंते ! ० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीओ ।
[१३०९ प्र.] भगवन् ! प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिक (उक्त स्वपर्याय में कितने काल तक लगातार रहता है ?)
[१३०९ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट सत्तर कोटाकोटी सागरोपम तक (वह प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिकरूप में बना रहता है।)
१३१०. णिगोए णं भंते ! णिगोए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?
गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंत कालं, अणंताओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अड्डाइजा पोग्गलपरियट्टा ।
[१३१० प्र.] भगवन् ! निगोद, निगोद के रूप में कितने काल तक (लगातार) रहता है ?
[१३१० उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक, उत्कृष्ट अनन्तकाल तक, कालतः अनन्त उत्सर्पिणीअवसर्पिणियों तक, क्षेत्रतः ढाई पुद्गलपरिवर्त्त तक (वह निगोदपर्याय में बना रहता है।)
१३११. बादरनिगोदे णं भंते ! बादर ० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीओ। [१३११ प्र.] भगवन् ! बादर निगोद, बादर निगोद के रूप में कितने काल तक रहता है ? '
[१३११ उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सत्तर कोटाकोटी सागरोपम तक बादर निगोद के रूप में बना रहता है।
१३१२. बादरतसकाइए णं भंते ! बादयरतसकाइए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेजवासअब्भहियाइं । [१३१२ प्र.] भगवन् ! बादर त्रसकायिक बादर त्रसकायिक के रूप में कितने काल तक रहता है ?
[१३१२ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातवर्ष अधिक दो हजार सागरोपम तक (वह त्रसकायिक-पर्याय वाला बना रहता है।)
१३१३. एतेसिं चेव अपजत्तगा सव्वे वि जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ।
[१३१३] इन (पूर्वोक्त) सभी (बादर जीवों) के अपर्याप्तक जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त काल तक अपने-अपने पूर्व पर्यायों में बने रहते हैं।
१३१४. बादरपज्जत्तए णं भंते ! बादरपज्जत्त ० पुच्छा?