Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्रं गोयमा ! जहेव णेरइए (सु. १२६१)। [१२६४-१ प्र.] भगवन् ! देव कितने काल तक देव बना रहता है ?
[१२६४-१ उ.] गौतम ! जैसा (सू. १२६१ में) नारक के विषय में कहा, वैसा ही देव (की कायस्थिति) के विषय में (कहना चाहिए।)
[२] देवी णं भंते ! देवीति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणेणं दस वाससहस्साई उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाई । [१२६४-२ प्र.] भगवन् ! देवी, देवी के पर्याय में कितने काल तक रहती है ?
[१२६४-२ उ.] गौतम ! जघन्यत: दस हजार वर्ष तक और उत्कृष्टतः पचपन पल्योपम तक (देवीरूप में कायम रहती है।)
१२६५. सिद्धे णं भंते ! सिद्धे त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए । [१२६५ प्र.] भगवन् ! सिद्ध जीव कितने काल तक सिद्धपर्याय से युक्त रहता है ?
[१२६५ उ.] गौतम ! सिद्ध जीव सादि-अनन्त होता है। (अर्थात्- सिद्धपर्याय सादि है, किन्तु अन्तरहित है।)
१२६६.[१] णेरइय-अपजत्तए णं भंते ! णेरइय-अपजत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहूत्तं । [१२६६-१ प्र.] भगवन् ! अपर्याय नारक जीव अपर्याप्तक नारकपर्याय में कितने काल तक रहता है ?
[१२६६-१ उ.] गौतम ! अपर्याप्तक नारक जीव अपर्याप्तक नारकपर्याय में जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त तक रहता है।
[२] एवं जाव देवी अपज्जत्तिया ।
[१२६६-२] इसी प्रकार (तिर्यञ्चयोनिक-तिर्यञ्चनी, मनुष्य-मानुषी, देव और) यावत् देवी की अपर्याप्त अवस्था अन्तर्मुहूर्त तक ही रहती है।
१२६७. णेरइयपजत्तए णं भंते ! णेरइयपजत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?
गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहूत्तूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई।
[१२६७ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त नारक कितने काल तक पर्याप्त नारकपर्याय में रहता है ?