Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अठारहवाँ कायस्थितिपद]
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_ [१२६७ उ.] गोतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम तक (पर्याप्त नारकरूप में बना रहता है।)
१२६८.[१]तिरिक्खजोणियपजत्तए णं भंते ! तिरिक्खजोणियपजत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ?
गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई । [१२६८-१ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त तिर्यञ्चयोनिक कितने काल तक पर्याप्त तिर्यञ्चरूप में रहता है ?
[१२६८-१ उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम तक (पर्याप्त तिर्यञ्चरूप में रहता है।)
[२] एवं तिरिक्खजोणिणिपज्जत्तिया वि।
[१२६८-२] इसी प्रकार पर्याप्त तिर्यञ्चनी (तिर्यञ्च स्त्री) की कायस्थिति के विषय में भी (समझना चाहिए।) - १२६९. मणूसे मणूसी वि एवं चेव ।
[१२६९] (पर्याप्त) मनुष्य (नर) और मानुषी (मनुष्यस्त्री) की कायस्थिति के विषय में भी इसी प्रकार (समझना चाहिए।) .
१२७०.[१] देवपजत्तए जहा णेरड्यपजत्तए (सु. १२६७) ।
[१२७०-१] पर्याप्त देव (की कायस्थिति) के विषय में (सू. १२६७ में अंकित) पर्याप्त नैरयिक (की कायस्थिति) के समान (समझना चाहिए ।)
[२] देविपज्जत्तिया णं भंते ! देविपज्जत्तिय त्ति कालओ केवचिरं होई ?
गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहूत्तूणाई, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाइं अंतोमुहूत्तूणाई । दारं २ ॥
[१२७०-२ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त देवी, पर्याप्त देवी के रूप में कितने काल तक रहती है ?
[१२७०-२ उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचपन पल्योपम तक पर्याप्त देवी-पर्याय में रहती है।
विवेचन - प्रथम-द्वितीय जीवद्वार-गतिद्वार - प्रस्तुत ग्यारह सूत्रों (सू. १२६० से १२७०) में जीवसामान्य की तथा नारकादि चार गति वाले विशिष्ट जीवों की कायस्थिति का निरूपण किया गया है।
जीव में सदैव निरन्तर जीवनपर्यारू क्यों और कैसे? - जीव सदा काल जीवनपर्याय से युक्त रहता है, क्योंकि जीव वही कहलाता है, जो जीवनपर्याय से विशिष्ट हो । जीवन का अर्थ है- प्राण धारण करना। प्राण