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________________ ३५८] [प्रज्ञापनासूत्रं गोयमा ! जहेव णेरइए (सु. १२६१)। [१२६४-१ प्र.] भगवन् ! देव कितने काल तक देव बना रहता है ? [१२६४-१ उ.] गौतम ! जैसा (सू. १२६१ में) नारक के विषय में कहा, वैसा ही देव (की कायस्थिति) के विषय में (कहना चाहिए।) [२] देवी णं भंते ! देवीति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणेणं दस वाससहस्साई उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाई । [१२६४-२ प्र.] भगवन् ! देवी, देवी के पर्याय में कितने काल तक रहती है ? [१२६४-२ उ.] गौतम ! जघन्यत: दस हजार वर्ष तक और उत्कृष्टतः पचपन पल्योपम तक (देवीरूप में कायम रहती है।) १२६५. सिद्धे णं भंते ! सिद्धे त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए । [१२६५ प्र.] भगवन् ! सिद्ध जीव कितने काल तक सिद्धपर्याय से युक्त रहता है ? [१२६५ उ.] गौतम ! सिद्ध जीव सादि-अनन्त होता है। (अर्थात्- सिद्धपर्याय सादि है, किन्तु अन्तरहित है।) १२६६.[१] णेरइय-अपजत्तए णं भंते ! णेरइय-अपजत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहूत्तं । [१२६६-१ प्र.] भगवन् ! अपर्याय नारक जीव अपर्याप्तक नारकपर्याय में कितने काल तक रहता है ? [१२६६-१ उ.] गौतम ! अपर्याप्तक नारक जीव अपर्याप्तक नारकपर्याय में जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त तक रहता है। [२] एवं जाव देवी अपज्जत्तिया । [१२६६-२] इसी प्रकार (तिर्यञ्चयोनिक-तिर्यञ्चनी, मनुष्य-मानुषी, देव और) यावत् देवी की अपर्याप्त अवस्था अन्तर्मुहूर्त तक ही रहती है। १२६७. णेरइयपजत्तए णं भंते ! णेरइयपजत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहूत्तूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। [१२६७ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त नारक कितने काल तक पर्याप्त नारकपर्याय में रहता है ?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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