Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र
[१२] हेमवय-एरण्णवयअकम्मभूमयमणूसाणं मणूसीण य कति लेस्साओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि । तं जहा - कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा ।
[१२५७-१२ प्र.] भगवन् ! हैमवत और ऐरण्यवत अकर्मभूमिज मनुष्यों और मनुष्यस्त्रियों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ?
[१२५७-१२ उ.] गौतम ! (इन दोनों क्षेत्रों के पुरुषों और स्त्रियों में) चार लेश्याएँ होती हैं। वे इस प्रकार- कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या ।
[१३] हरिवास-रम्मयअकम्मभूमयमणुस्साणं मणूसीण य पुच्छा ? गोयमा ! चत्तारि । तं जहा- कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा ।
[१२५७-१३ प्र.] भगवन् ! हरिवर्ष और रम्यकवर्ष के अकर्मभूमिज मनुष्यों और मनुष्यस्त्रियों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? . [१२५७-१३ उ.] गौतम ! (इन दोनों क्षेत्रों के अकर्मभूमिज पुरुषों और स्त्रियों में) चार लेश्याएँ होती हैं। वे इस प्रकार - कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या ।
[१४] देवकुरूत्तरकुरुअकम्मभूमयमणुस्साणं एवं चेव ।।
[१२५७-१४] देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्र के अकर्मभूमिज मनुष्यों में भी इसी प्रकार (चार लेश्याएँ जाननी चाहिए ।)
[१५] एतेसिं चेव मणूसीणं एवं चेव । । [१२५७-१५] इन (पूर्वोक्त दोनों क्षेत्रों) की मनुष्यस्त्रियों में भी इसी प्रकार (चार लेश्याएँ समझनी चाहिए ।)
[१६] घायइसंड पुरिमद्धे एवं चेव, पच्छिममद्धे वि। एवं पुक्खरद्धे वि भाणियव्वं ।'
[१२५७-१६] वातकीषण्ड के पूर्वार्द्ध में तथा पश्चिमार्द्ध में भी मनुष्यों और मनुष्यस्त्रियों में इसी प्रकार (चार लेश्याएँ) कहनी चाहिए। इसी प्रकार पुष्करार्द्ध द्वीप में भी कहना चाहिए।
विवेचन - विभिन्न क्षेत्रीय मनुष्यों में लेश्याओं की प्ररूपणा - प्रस्तुत सूत्र (१२५७/१६ तक) में सामान्य मनुष्यों से लेकर सभी क्षेत्रों के सभी प्रकार के कर्मभूमिज और अकर्मभूमिज मनुष्यों तथा वहाँ की स्त्रियों में लेश्याओं की प्ररूपणा की गई हैं।
निष्कर्ष- प्रत्येक क्षेत्र के कर्मभूमिज मनुष्यों और स्त्रियों में छह लेश्याएँ और अकर्मभूमिक मनुष्यों और
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ग्रन्थाग्रम् ५५००