Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र
गोयमा ! सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सट्ठाणा दव्वट्ठयाए, जहण्णया णीललेस्सट्ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा, एवं कण्हलेस्सट्ठाणा तेउलेस्सट्ठाणा पम्हलेस्सट्ठाणा, जहण्णगा सुक्कलेसटाणा दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा। जहण्णएहिंतो सुक्कलेस्सहाणेहिंतो दव्वट्ठयाए उक्कोसा काउलेस्सट्ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा, उक्कोसा नीललेसट्ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा, एवं कण्हलेस्सट्ठाणा तेउलेसट्ठाणा पम्हलेसट्ठाणा, उक्कोसा सुक्कलेस्सट्ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा। पदेसट्ठयाए - सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सट्टाणा पएसट्ठयाए, जहण्णगाणीललेसट्टयाए पएसट्टयाए असंखेजगुणा, एवं जहवे दव्वट्ठयाए तहेव पएसट्ठयाए वि भाणियव्वं, णवरं पएसट्टयाए त्ति अभिलावविसेसो। दव्वटुपएसट्टयाए- सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सट्ठाणा दव्वट्ठया, जहण्णगा णीललेसट्ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा, एवं कण्हलेसट्टाणा तेउलेसट्ठाणा पम्हलेसट्टाणा, जहण्णया सुक्कलेसट्ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा। जहण्णएहिंतो सुक्कलेसट्ठाणेहिंतो दव्वट्ठयाए उक्कोसा काउलेसट्ठाणा दव्वयाए असंखेजगुणा, उक्कोसा णीललेसटाणाए दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा, एवं कण्हलेसटाणा तेउलेसट्ठाणा पम्हलेसट्टाणा, उक्कोसागा सुक्कलेसट्ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा। उक्कोसएहितो सुक्कलेसट्ठाणेहिंतो दव्वट्ठयाए जहण्णगा काउलेसट्ठाणा पदेसट्ठयाए अणंतगुणा, जहण्णगा णीललेसट्ठाणा पएसट्ठयाए असंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेस्ट्ठाणा तेउलेसट्ठाणा पम्हलेसट्ठाणा, जहण्णगा सुक्कलेसट्ठाणा असंखेज्जगुणा, जहण्णएहिंतो सुक्कलेसट्ठाणेहिंतो पदेसट्ठयाए उक्कोसा काउलेसट्टाणा पदेसट्ठयाए असंखेजजगुणा, उक्कोसया णीललेसट्ठाणा पदेसट्ठयाए असंखेजगुणा, एवं कण्हलेसट्ठाणा तेउलेसट्ठाणा पम्हलेसट्ठाणा, उक्कोसया सुक्कलेसट्ठाणा पएसट्टयाए असंखेजगुणा ।
॥पण्णवणाए भगवतीए लेस्सापदे चउत्थो उद्देसओ समत्तो ॥
[१२४९ प्र.] भगवन् ! इस कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या के जघन्य स्थानों में द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा द्रव्य और प्रदेशों (उभय) की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं?
__ [१२४९ उ.] गौतम ! सबसे थोड़े द्रव्य की अपेक्षा से कापोतलेश्या के जघन्य स्थान हैं, उनसे नीललेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार कृष्णलेश्या तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्लेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से (उत्तरोत्तर) असंख्यातगुणे हैं। द्रव्य की अपेक्षा से जघन्य शुक्ललेश्यास्थानों से उत्कृष्ट कापोतलेश्यास्थान असंखतगुणे हैं, उनसे नीललेश्या के उत्कृष्ट स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार कृष्णलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या के उत्कृष्ट स्थान (उत्तरोत्तर) द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं।
प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे कम कापोतलेश्या के जघन्य स्थान हैं, उनसे नीललेश्या के जघन्य स्थान, प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार जैसे द्रव्य की अपेक्षा से अल्पबहुत्व का कथन किया गया है, वैसे ही प्रदेशों की अपेक्षा से भी अल्पबहुत्व कहना चाहिए। विशेषता यह है कि यहाँ प्रदेशों की अपेक्ष से'