Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है। कृष्णलेश्या इससे भी अनिष्टतर है, अधिक अकान्त (असुन्दर), अधिक अप्रिय, अधिक अमनोज्ञ और अधिक अमनाम (अत्यधिक अवांछनीय) वर्ण वाली कही. गई है।
१२२७. णीललेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पण्णत्ता ?
गोयमा ! से जहाणामए भिंगे इ वा भिंगपत्ते इ वा चासे इ वा चासपिच्छे इ वा सुए इ वा सुयपिच्छे इ वा सामा इ वा वणराई इ वा उच्चंतए इ वा पारेवयगीवा इ वा मोरगीवा इ वा हलधरवसणे इ वा अयसिकुसुमए इ वा बाणकुसुमए इ वा अंजणकेसियाकुसुमए इ वा णीलुप्पले इ वा नीलासोए इ वा णीलकणवीरए इ वा णीलबंधुजीवए इ वा ।
भवेतारूवा? गोयमा ! णो इणढे, एत्तो जाव अमणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता ? [१२२७ प्र.] भगवन् ! नीललेश्या वर्ण से कैसी है ?
[१२२७ उ.] गौतम ! जैसे कोई भंग (पक्षी) हो, भृगपत्र हो, अथवा पपीहा (चास पक्षी हो, या चासपक्षी की पांख हो, या शुक (तोता) हो, तोते की पांख हो, श्यामा (प्रियंगुलता) हो, अथवा वनराजि हो, या दन्तराग (उच्चन्तक) हो, या कबूतर की ग्रीवा हो, अथवा मोर की ग्रीवा हो, या हलधर (बलदेव) का (नील) वस्त्र हो, या अलसी का फूल हो, अथवा वण (बाण) वृक्ष का फूल हो, या अंजनकेसि का कुसुम हो, नीलकमल हो, अथवा नील अशोक हो, नीला कनेर हो, अथवा नीला बन्धुजीवक वृक्ष हो, (इनके समान नीललेश्या नीले वर्ण की है।)
[प्र.] भगवन् ! क्या नीललेश्या (वस्तुतः) इस रूप की होती है ?
[उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (योग्य) नहीं है । नीललेश्या इससे भी अनिष्टतर, अधिक अकान्त, अधिक अप्रिय, अधिक अमनोज्ञ और अधिक अमनाम वर्ण से कही गई है।
१२२८. काउलेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पण्णत्ता ?
गोयमा ! से जहाणामए खयरसारे इ वा कयरसारे इ वा धमाससारे इ वा तंबे इ वा तंबकरोडए इ वा तंबच्छिवाडिया इ वा वाइंगणिकुसुमए इ वा कोइलच्छदकुसुमए इ वा < जवासाकुसुमे इ वा कलकुसुमे इ वा )।
भवेतारूवा? गोयमा ! णो इणढे समढे, काउलेस्सा णं एत्तो अणिद्रुतरिया जाव अमणामतरिया चेव वण्णेणं
<> इस चिन्ह के सूचित पाठ मलयगिरि वृत्ति में नहीं है ।