Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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३२४]
[प्रज्ञापनासूत्र
तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुजो भुजो परिणमति ।
सेएणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुजो भुजो परिणमति ।
[१२२० प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त हो कर उसी रूप में, उसी के वर्णरूप में, उसी के गन्धरूप में, उसी के रसरूप में, उसी के स्पर्शरूप में पुनः पुनः परिणत होती है ?
[१२२० उ.] हाँ, गौतम ! कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त होकर उसी रूप में यावत् पुनः पुनः परिणत होती है। - [प्र.] भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त करके उसी रूप में यावत् बार-बार परिणत होती है ?
[उ.] गौतम ! जैसे छाछ आदि खटाई का जावण (दूष्य) पाकर दूध अथवा शुद्ध वस्त्र, रंग (लाल, पीला आदि का सम्पर्क) पाकर उस रूप में, उसी के वर्ण-रूप में, उसी के गन्ध-रूप में, उसी के रस-रूप में, उसी के स्पर्श-रूप में पुनः पुनः परिणत हो जाता है, इसी प्रकार हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि कृष्णलेश्या नीललेश्या को पा कर उसी के रूप में यावत् पुनः पुनः परिणत होती है।
१२२१. एवं एतेणं अभिलावेणंणीललेस्सा काउलेस्सं पप्प, काउलेस्सा तेउलेस्सं पप्प, तेउलेस्सा पम्हलेस्सं पप्प, पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सं पप्प जाव भुजो भुजो परिणमति ।
[१२२१] इसी प्रकार (पूर्वोक्त) कथन (अभिलाप) के अनुसार नीललेश्या कापोतलेश्या को प्राप्त होकर, कापोतलेश्या तेजोलेश्या को प्राप्त होकर, तेजोलेश्या पद्मलेश्या को प्राप्त होकर और पद्मलेश्या शुक्ललेश्या को प्राप्त होकर उसी के रूप में और यावत् (उसी के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के रूप में) पुनः पुनः परिणत हो जाती है।
__ १२२२. से णूणं भंते ! कण्हलेस्सा णीललेस्सं काउलेस्सं तेउलेस्सं पम्हलेस्सं सुक्कलेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावन्नत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुजो भुजो परिणमति ?
हंता गोयमा ! कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प जाव सुक्कलेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावन्नत्ताए तागंधत्ताए ताफासत्ताए भुजो भुजो परिणमति ।
से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चति किण्हलेस्सा णीललेस्सं जाव सुक्कलेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुजो भुजो परिणमति ?
गोयमा ! से जहाणामए वेरूलियमणी सिया किण्णसुत्तए वा णीलसुत्तए वा लोहियसुत्तए वा हालिद्दसुत्तए वा सुकिल्लसुत्तए वा आइए समाणे तारूवत्ताए जाव भुजो भुजो परिणमति ।
सेएणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ किण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प जाव सुक्कलेस्सं पप्प तारूवत्ताए