Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
३२२]
[ प्रज्ञापनासूत्र
होते हैं, जो प्रमत्तसंयत में पाए जाते हैं। यद्यपि मनःपर्यायज्ञान अप्रमत्तसंयत जीव को ही उत्पन्न होता है, परन्तु उत्पन्न होने के बाद वह प्रमत्तदशा में भी रहता है । इस दृष्टि से कृष्णलेश्यावाला जीव भी मनःपर्यायज्ञानी हो सकता है।
शुक्लेश्या वाले की विशेषता शुक्ललेश्या वाला जीव केवलज्ञान में भी हो सकता है। केवलज्ञान शुक्ललेश्या के ही होता है अन्य किसी में नहीं। यही अन्य लेश्या वालों से शुक्ललेश्या वाले की विशेषता है।
॥ सत्तरहवां लेश्यापद : तृतीय उद्देशक समाप्त ॥
१.
२.
प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३५७
वही, मलय. वृत्ति, पत्रांक ३५८
**