Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सत्तरहवाँ लेश्यापद : प्रथम उद्देशक]
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आहारादि-प्ररूपणा) के समान (जानना चाहिए) ।
११३२. असुरकुमारा णं भंते ! सव्वे समकम्मा ? गोयमा ! णो इणढे समढे । से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ ?
गोयमा ! असुरकुमारा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पुव्वोवण्णगा य पच्छोववण्णगा य।तत्थ णं जे ते पुव्वोववण्णगा ते णं महाकम्मतरागा । तत्थ णं जे ते पच्छोववण्णगा ते णं अप्पकम्मतरागा, से एएणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ असुरकुमारा णो सव्वे समकम्मा ।
[११३२ प्र.] भगवन् ! सभी असुरकुमार समान कर्म वाले हैं ? [११३२ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । [प्र.] भगवन् ! किस हेतु से कहते हैं कि सभी असुरकुमार समान कर्म वाले नहीं हैं ?
[उ.] गौतम ! असुरकुमार दो प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार - पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक। उनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे महाकर्म वाले हैं। उनमें जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे अल्पतरकर्म वाले हैं । इसी कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सभी असुरकुमार समान कर्म वाले नहीं हैं।
११३३.[१] एवं वण्ण-लेस्साए पुच्छा।
तत्थ णं जे ते पुव्वोववण्णगा ते णं अविसुद्धवण्णतरागा । तत्थ णं जे ते पच्छोववण्णगा ते णं विसुद्धवण्णतरागा, से एएणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चति असुरकुमारा सव्वे णो समवण्णा ।
__ [११३३-१ प्र.] इसी प्रकार वर्ण और लेश्या के लिए प्रश्न कहना चाहिए। (भगवन् ! असुरकुमार क्या सभी समान वर्ण और समान लेश्या वाले हैं ?)
[११३-१ उ.] गौतम ! (पूर्वोक्त) दो प्रकार के असुरकुमारों में जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे अविशुद्धतर वर्ण वाले हैं तथा उनमें जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे विशुद्धतर वर्ण वाले हैं। इस कारण गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सभी असुरकुमार समान वर्ण वाले नहीं होते ।
[२] एवं लेस्साए वि। [११३३-२] इसी प्रकार लेश्या के विषय में (कहना चाहिए ।) ११३४. वेदणाए जहा णेरइया (सु. ११२८)।
[११३४] (असुरकुमारों की) वेदना के विषय में (सू. ११२८ में उक्त) नैरयिकों (की वेदनाविषयक प्ररूपणा) के समान (कहना चाहिए।)