Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ प्रज्ञापनासूत्र
उसी प्रकार कहना चाहिए, जैसा (सू. ११३१ से ११४३ तक में) समुच्चय असुरकुमारादि के विषय में कहा गया है। मनुष्यों में (समुच्चय से) क्रियाओं की अपेक्षा कुछ विशेषता है । जिस प्रकार समुच्चय मनुष्यों का क्रियाविषयक कथन सूत्र ११४२ में किया गया है, उसी प्रकार कृष्णलेश्यायुक्त मनुष्यों का कथन भी यावत्"उनमें से जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे तीन प्रकार के कहे गए हैं, वे इस प्रकार - संयत, असंयत और संयतासंयत"; (इत्यादि सब कथन पूर्ववत् करना चाहिए ।)
११४८. जोइसिय-वेमाणिया आइल्लिगासु तिसु लेस्सासु ण पुच्छिज्जंति ।
[११४८] ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में प्रारम्भ की तीन लेश्याओं (कृष्ण, नील और कापोत लेश्या) को लेकर प्रश्न नहीं करना चाहिए ।
११४९. एवं जहा किण्हलेस्सा विचारिया तहा णीललेस्सा विचारियव्वा ।
[११४९] इसी प्रकार जैसे कृष्णलेश्या वालों (चौवीसदण्डकवर्ती जीवों) का विचार किया है, उसी प्रकार नीललेश्या वालों का भी विचार कर लेना चाहिए ।
११५०. काउलेस्सा णेरइएहिंतो आरब्भ जाव वाणमंतरा । णवरं काउलेस्सा णेरड्या वेदणाए जहा ओहिया (सु. ११२८ ) ।
[११५०] कापोतलेश्या वाले नैरयिकों से प्रारम्भ करके (दस भवनपति, पृथ्वीकायिकादि एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रियतिर्यञ्च, मनुष्य एवं ) वाणव्यन्तरों तक का सप्तद्वारादिविषयक कथन भी इसी प्रकार समझना चाहिए । विशेषता यह है कि कापोतलेश्या वाले नैरयिकों का वेदना के विषय में प्रतिपादन (सू. ११२८ में उक्त) समुच्चय ( औधिक नारकों) के समान (जानना चाहिए ।)
११५१. तेउलेस्साणं भंते ! असुरकुमाराणं ताओ चैव पुच्छाओ ।
गोयमा ! जव ओहिया तहेव (सु. ११३१ - ३५ ) । णवरं वेदणाए जहा जोतिसिया (सु. ११४४ ) । [११५१ प्र.] भगवन् ! तेजोलेश्या वाले असुरकुमारों के समान आहारादि सप्तद्वारविषयक प्रश्न उसी प्रकार हैं, इनका क्या समाधान है ?
[११५१ उ.] गौतम ! जैसे (लेश्यादिविशेषणरहित ) समुच्चय असुरकुमारों का आहारादिविषयक कथन (सू. ११३१ से ११३५ तक में) किया है, उसी प्रकार तेजोलेश्याविशिष्ट असुरकुमारों की आहारादिसम्बन्धी वक्तव्यता समझ लेनी चाहिए । विशेषता यह है कि वेदना के विषय में जैसे (सू. ११४४ में) ज्योतिष्कों की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार यहाँ भी कहनी चाहिए ।
११५२. पुढवि - आउ-वणस्सइ-पंचेंदियतिरिक्ख - मणूसा जहा ओहिया ( ११३७-३९, ११४२४२) तहेव भाणियव्वा । णवरं मणूसा किरियाहिं जे संजया ते पमत्ता य अपमत्ता य भाणियव्वा, सरागा वीयरागा णत्थि ।