Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सत्तरहवाँ लेश्यापद : द्वितीय उद्देशक
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[११५८ प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक जीवों में कितनी लेश्याएँ कही गई हैं ? [११५८ उ.] गौतम ! (उनमें) छह लेश्याएँ होती हैं, वे इस प्रकार- कृष्णलेश्या से लेकर शुक्ललेश्या
तक ।
११५९. एगिंदियाणं भंते ! कति लेस्साओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि लेस्साओ। तं जहा- कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा । [११५९ प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों में कितनी लेश्याएँ कही हैं ? [११५९ उ.] गौतम ! (उनमें) चार लेश्याएँ होती हैं। वे इस प्रकार- कृष्णलेश्या से तेजोलेश्या तक । ११६०. पुढविक्काइयाणं भंते ! कति लेस्साओ? गोयमा ! एवं चेव । [११६० प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? . [११६० उ.] गौतम ! इनमें भी इसी प्रकार (चार लेश्याएँ समझनी चाहिए ।) ११६१. आउ-वणस्सइकाइयाण वि एवं चेव । [११६१] इसी प्रकार अप्कायिकों और वनस्पतिकायिकों में भी चार लेश्याएँ (जाननी चाहिए।) ११६२. तेउ-वाउ-बेइंदिय-चउरिदियाणं जहा णेरइयाणं (सु. ११५७) ।
[११६२] तेजस्कायिक, वायुकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में (सू. ११५७ में उक्त) नैरयिकों की तरह (तीन लेश्याएँ होती हैं।)
११६३.[१] पंचेंदियतिरक्खजोणियाणं पुच्छा? गोयमा ! छल्लेसाओ, कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा । [११६३-१ प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों में कितनी लेश्याएं होती हैं ? [११६३-१ उ.] गौतम ! (उनमें) छह लेश्याएँ होती हैं, यथा- कृष्णलेश्या से शुक्ललेश्या तक। [ २ ] सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ? गोयमा ! जहा णेरइयाणं (सु. ११५७) । [११६३-२ प्र.] भगवन् ! सम्मूछिम-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? [११६३-२ उ.] गौतम ! नारकों के समान (प्रारम्भ की तीन लेश्याएँ) समझनी चाहिए । [३] गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा?