Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सत्तरहवाँ लेश्यापद : द्वितीय उद्देशक]
काउलेस्सा महिड्डिया, काउलेस्सेहिंतो तेउलेस्सा महिड्डिया, सव्वप्पिड्डिया एगिंदियतिरिक्खजोणिया कण्हलेस्सा, सव्वमहिड्डिया तेउलेस्सा ।
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[११९४ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले, यावत् तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में से कौन, किससे अल्पर्द्धिक हैं, अथवा महर्द्धिक हैं ?
[११९४ उ.] गौतम ! कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रिय तिर्यञ्चों की अपेक्षा नीललेश्या वाले एकेन्द्रिय महर्द्धिक हैं, नीललेश्या वाले (एकेन्द्रियों) से कापोतलेश्या वाले (एकेन्द्रिय) महर्द्धिक हैं, कापोतलेश्या वालों से तेजालेश्या वाले (एकेन्द्रिय) महर्द्धिक है। सबसे अल्पऋद्धि वाले कृष्णलेश्याविशिष्ट एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक हैं और सबसे महाऋद्धि वाले तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रिय हैं ।
११९५. एवं पुढविक्काइयाण वि ।
[११९५] इसी प्रकार ( सामान्य एकेन्द्रिय तिर्यञ्चों की अल्पर्द्धिकता और महर्द्धिकता की तरह कृष्णादिचतुलेश्याविशिष्ट) पृथ्वीकायिकों की (अल्पर्द्धिकता के विषय में समझ लेना चाहिए ।)
१९९६. एवं एतेणं अभिलावेणं जहेव लेस्साआ भावियाओ तहेव णेयव्वं जाव चउरिंदिया । [११९६] इस प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक जिनमें जितनी लेश्याएँ जिस क्रम से विचारी - कही गई हैं, उसी क्रम से इस (पूर्वोक्त) आलापक के अनुसार उनकी अल्पर्द्धिकता-महर्द्धिकता समझ लेनी चाहिए ।
११९७. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीणं सम्मुच्छिमाणं गब्भवक्कंतियाण य सव्वेसिं भाणियव्वं जाव अप्पिढिया वेमाणिया देवा तेउलेस्सा, सव्वमहिड्ढिया वेमाणिया देवा कस्सा |
[११९७] इसी प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों, तिर्यञ्चस्त्रियों, सम्मूर्च्छिमों और गर्भजों - सभी की कृष्णलेश्या से लेकर शुक्ललेश्यापर्यन्त यावत् वैमानिक देवों में जो तेजोलेश्या वाले हैं, वे सबसे अल्पर्द्धिक हैं और जो शुक्ललेश्या वाले हैं, वे सबसे महर्द्धिक हैं, (यहाँ तक अल्पर्द्धिकता-महर्द्धिकता का कथन करना चाहिए ।) १९९८. केइ भांति - चउवीसदंडएणं इड्डी भाणियव्वा ।
॥ बीओ उद्देसओ समत्तो ॥
[११९८] कई आचार्यों का कहना है कि चौवीस दण्डकों को लेकर ऋद्धि का कथन करना चाहिए |
विवेचन - सलेश्य सामान्यजीवों तथा चौवीस दण्डकों में अल्पर्द्धिकता - महर्द्धिकता- विचार
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- प्रस्तुत आठ सूत्रों (११९१ से १९९८ तक) में कृष्णादिलेश्याविशिष्ट सामान्यजीवों और चौवीस दण्डकवर्ती
जीवों की अल्पर्द्धिकता और महर्द्धिकता का विचार प्रस्तुत किया गया है ।
निष्कर्ष - पूर्व-पूर्व की लेश्या वाले अल्पर्द्धिक हैं और क्रमश: उत्तरोत्तर लेश्या वाले महर्द्धिक हैं।