Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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३१८]
[प्रज्ञापनासूत्र
दिशाओं-विदिशाओं में बार-बार देखता हुआ न तो बहुत अधिक क्षेत्र को जानता है और न बहुत अधिक क्षेत्र देख पाता है, यावत् (वह) थोड़े ही अधिक क्षेत्र को जानता और देख पाता है। इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि कृष्णलेश्या वाला नारक ........यावत् थोड़े ही क्षेत्र को देख पाता है।
। [२] णीललेसे णं भंते ! णेरइए कण्हलेसं णेरइयं पणिहाय ओहिणा सव्वओ समंता समभिलोएमाणे समभिलोएमाणे केवतियं खेत्तं जाणइ ? केवतियं खेत्तं पासइ ?
गोयमा ! बहुतरागं खेत्तं जाणइ बहुतरागं खेत्तं पासइ, दूरतरागं खेत्तं जाणइ दूरतरागं खेत्तं पासइ, वितिमिरतरागं खेत्तं जाणइ वितिमिरतरागं खेत्तं पासइ, विसुद्धतरागं खेत्तं जाणइ विसुद्धतरागं खेत्तं पासइ। ___ सेकेणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ णीललेस्से णंणेरइए कण्हलेस्संणेरइयं पणिहाय जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासइ?
गोयमा ! से जहाणामए केइ पुरिसे बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ पव्वयं दुरूहति, दुरूहित्ता सव्वओ समंता समभिलोएज्जा, तए णं से पुरिसे धरणितलगयं पुरिसं पणिहाय सव्वओ समंता समभिलोएमाणे समभिलोएमाणे बहुतरागं खेत्तं जाणइ जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासइ ।
से एतेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ णीललेस्से णेरइए कण्हलेस्सं जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासइ।
[१२१५-२ प्र.] भगवन् ! नीललेश्या वाला नारक, कृष्णलेश्या वाले नारक की अपेक्षा सभी दिशाओं और विदिशाओं में अवधि (ज्ञान) के द्वारा देखता हुआ कितने क्षेत्र को जानता है. और कितने क्षेत्र को (अवधिदर्शन से) देखता है ?
[१२१५-२ उ.] गौतम ! (वह नीललेश्या नारक कृष्णलेश्यी नारक की अपेक्षा) बहुतर क्षेत्र को जानता है और बहुतर क्षेत्र को देखता है, दूरतर क्षेत्र को जानता है और दूरतर क्षेत्र को देखता है, (वह) क्षेत्र को वितिमिरतर (भ्रान्तिरहित रूप से) जानता है तथा क्षेत्र को वितिमिरतर देखता है, (वह) क्षेत्र को विशुद्धतर (अत्यन्त स्फुट रूप से) जानता है तथा क्षेत्र को विशुद्धतर (रूप से) देखता है।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि नीललेश्या वाला नारक, कृष्णलेश्या वाले नारक की अपेक्षा यावत् क्षेत्र को विशुद्धतर जानता है तथा क्षेत्र को विशुद्धतर देखता है ?
[उ.] गौतम ! जैसे कोई पुरुष अतीव सम, रमणीय भूमिभाग से पर्वत पर चढ़ कर सभी दिशाओंविदिशाओं में अवलोकन करे, तो वह पुरुष भूतल पर स्थित पुरुष की अपेक्षा, सब तरफ देखता-देखता हुआ बहुतर क्षेत्र को जानता-देखता है, यावत् क्षेत्र को विशुद्धतर जानता-देखता है। इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि नीललेश्या वाला नारक, कृष्णलेश्या वाले नारक की अपेक्षा क्षेत्र को यावत् विशुद्धतर (रूप से) जानता-देखता है।
[३] काउलेसे णं भंते ! णेरइए णीललेस्सं णेरइयं पणिहाय ओहिणा सव्वओ समंता